Tuesday, 12 April 2016

जुदा किसी का हबीब न हो:

जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो

मैंने ज़माने के एक बीते दोर को देखा है.....
दिल के सुकून को और गलियों के शोर को देखा है....
मैं जानता हूँ की लोग कैसे बदल जाते हैं…

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी

टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है..
क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है..

किसकी है ये तस्वीर जो बनती नहीं मुझसे,
मैं किसका तक़ाज़ा हूँ कि पूरा नहीं होता ..!

गुम हो चले हो तुम तो बहुत ख़ुद में ऐ 'मुनीर'
दुनिया को कुछ तो अपना पता देना चाहिए

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ!

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

उच्च उपलब्धिओं के लिए आवश्यक हैं उच्च लक्ष्य।

वो मायूसी के लम्हों में ज़रा भी हौसला देता !
तो हम कागज़ की कश्ती पर समुन्दर में उतर जाते !!

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