न जाने कितने चरागौ को मिल गई शोहरत,
एक आफताब के बे वक्त डूब जाने से.....
मुन्सिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते
हज़ार कारवाँ यूँ तो हैं मेरे साथ मगर
जो मेरे नाम है वो क़ाफ़िला कब आएगा
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर इक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी ।
कहाँ आके रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
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