उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से
किसी को यूँ तो कोई मुझ से इख़्तिलाफ़ न था
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इतनी तौहीन न कर मेरी बला-नोशी की
साक़िया मुझ को न दे माप के पैमाने से ...
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बला-नोशी =excessive drinking
पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिरा
इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया
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ये कहना था उन से 'मोहब्बत है मुझ को'
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं
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यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते॥
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जब यह मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है।
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इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
दोस्तों से शाम के पैदल सफ़र छीने गए
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फूलों को सुर्खी देने में
पत्ते पीले हो जाते हैं
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काटकर गैरों की टाँगें ख़ुद लगा लेते हैं लोग,
इस शहर में इस कदर भी कद बढ़ा लेते हैं लोग.
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तेरे इश्क़ की आग में जल कर ए मेहबूब,
कुछ मैं राख हुआ कुछ मैं पाक हुआ..
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एहसान दोनों का ही था मकान पर....
छत ने जता दिया और नींव ने छुपा लिया....
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अदब से झुक जाती है वो शाख़ खुद-ब-खुद
जो लौटे कोई परिंदे, भरी धूप में दाना लिए
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जब भी मेरी मिसाल देता है
मुझको हैरत में डाल देता है
झूठ भी बोलता है जब
वो दलीलें कमाल देता है.
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गुनाह-ए-इश्क में वो दौर भी बहुत खास रहा,
जब मेरा न होकर भी तू मेरे बहुत पास रहा ...!
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