मैं ले रहा हूँ जाएज़ा हर एक लहर का
क्या जाने कब ये मुझ को समुंदर पुकार ले
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मैंने आग़ाज़ से अंजाम-ऐ-सफ़र जाना है,
सब को दो चार क़दम चल के ठहर जाना है
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उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम
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कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
ध्यान तुझ से अगर हटा लिया जाए
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