ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा मैं
सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा
~दुष्यंत कुमार
साथ भी छोड़ा तो कब, जब सब बुरे दिन कट गए
ज़िंदगी तू ने कहाँ आ कर दिया धोका मुझे
🍃🌹🍃
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
🍃🌹🍃
सफ़र में जब निकल आये हो तो इतनी शिकायत क्यों
सड़क थोड़ी-बहुत तो बीच में तिरछी निकलती है
🍃🌹🍃
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े..
🍃🌹🍃
दस्तार-turban
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
🍃🌹🍃
इस दौर में इंसान भी, ढूँढे नहीं मिलता...
इक तुम हो, मेरे यार- खुदा ढूँढ रहे हो...!
🍃🌹🍃
आज फिर उनसे मुलाक़ात हुई,
आज फिर खुदा से इक और शिकायत हुई...
🍃🌹🍃
No comments:
Post a Comment