रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू ,
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं |
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किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
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जीत तेरा ही मुक़द्दर थी सो तू जीत गया
वर्ना हारे हुए लश्कर में सिकंदर थे बहुत
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जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
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अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए,
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
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