हजार खूबसूरत से बहाने थे पास मेरे जिन्दगी जीने के लिए,
और मै बेवजह यूँ ही वक़्त का मजाक बनता रहा
बात मुक़द्दर पे आ रुकी है वर्ना ....
कोई क़सर तो ना छोड़ी थी,तुझे चाहने में
"सुधारक वे हैं जो लोगों को उनकी
आवश्यकताएं आंकने की शिक्षा दें।"
ये कौन सा मुक़ाम है, फलक नहीं, ज़मीं नहीं
कि शब नहीं, सहर नहीं, कि ग़म नहीं, ख़ुशी नहीं
कहाँ ये लेके आ गयी, हवा तेरे दयार की
था इरादा तेरी फ़रियाद करें हाकिम से
वो भी ऐ शोख़ तेरा चाहने वाला निकला
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
"नैतिकता के बारे में जानना ही पर्याप्त नहीं होता, इसे ग्रहण करना, अपनाना तथा स्वयं को अच्छा बनाने के लिये अन्य कोई भी कदम उठाना भी आवश्यक है। "
मुझे क्या उस हस्ती से जो मिट चले,
दरक़ार उस वजूद से है जो मेरे बाद भी ज़िंदा रहे !
ऐ नौजवां तू इक अलग पहचान बन के चल ।
जो भर दे जोश मुर्दों में वो जान बन के चल ।।
यादों में लिपटी है हर रात उस पर सन्नाटे की धुल उडाता क्यों है
हर पल कोशिश है उससे भूलने की पर भूलकर भी याद आता क्यों है
रात तो वक्त की पाबंद है ढल जायेगी,
देखना ये है कि चराग़ों का सफ़र कितना है
पेड़ काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जायेंगे जब सर पे न साया होगा
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,
भूल जाता है, ज़मीं से ही नज़र आता है
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