Wednesday, 25 January 2017

घर से निकल कर जाता हूँ:

घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ
इक दिन अपना पीछा कर के देखा जाए

जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है

मैं इस लिए भी तेरे फ़न की क़द्र करता हूँ,
तू झूट बोल के आँसू निकाल लेता है

मंज़र ही हादसे का अजीबो ग़रीब था....
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था....

"किसी काम को करने के बारे में बहुत देर तक सोचते रहना अक़सर उसके बिगड़ जाने का कारण बनता है।"

हम को ये बात समझने में भी उम्र लगी
बात तो सच्च थी मगर मुँह पे नहीं कहनी थी

No comments:

Post a Comment

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...