मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
मेरे हरीफ़ का सब कुछ लगा था दाँव पर,
मुक़ाबले में मेरा हारना ज़रूरी था...!!
सोने वाले समझ नहीं सकते..
जागने वालों के मसले क्या हैं..?
जब भी होती है गुफ़्तगू ख़ुद से....
ज़िक्र तेरा ज़रूर होता है......
*जज्बात वहा ही जाहिर करो जहा उसकी कद्र हो...!!!*
*बाकी तो आंखो से बहता हुआ आंसु भी,, लोगो को पानी लगता है...!!!*
कहो हवा से...... कि इतनी चराग़-पा न फिरे
मैं ख़ुद ही .....................
अपने दिए को बुझाने वाला हूँ !
अपने दिए को बुझाने वाला हूँ !
फ़ासला नज़रों का धोखा भी हो सकता है,
वो मिले ना मिले हाथ बढ़ाकर देखो...
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