इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
थाम कर यूँ हाथ मेरा ,
एक शाम मेरे नाम कर देना,
एक शाम मेरे नाम कर देना,
कि उसके बाद किसी शाम की ख्वाइश न करे
ये मुहब्बत तो बहुत बाद का क़िस्सा है मियाँ
मैंने उस हाथ को पकड़ा था परेशानी में
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को
इतने ख़ूबसूरत लब झूट कैसे बोलेंगे
यह ग़म और खुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं
फिर रास्ता ही रास्ता है ना हंसना है ना रोना है
मुझ को बीमार करेगी तिरी आदत इक दिन ....
और फिर तुझ से भी, अच्छा नहीं हो पाऊँगा !
भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
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