Saturday, 2 March 2019

महक उठा है:

महक उठा हैं भारत माँ के माथे का ये चन्दन हैं..!!
अभिनंदन का सहृदय अभिनंदन हैं..!!
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कितना अच्छा होता

गर मेरी कमी से तुम्हें
भी कोई फ़र्क़ पड़ता !
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अंधियारे को मिटाने, जग में ज्योत जगाने

एक छोटा-सा दीया था कहीं जल रहा..
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झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते है।

बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।
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'बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं,

:फ़िराक़ गोरखपुरी
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रहे न कुछ मलाल बड़ी शिद्दत से कीजिये ,

नफरत भी कीजिये तो ज़रा मुहब्बत से कीजिये..
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तेरी मर्ज़ी है जिधर उँगली पकड़ कर ले जा..!!

मुझ से अब तेरे अलावा नहीं देखा जाता....!!!
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ज़िन्दा हो तो ज़िन्दा दिखना ज़रूरी है..,

यु मातम मना कर खुशियों का हासिल कुछ भी नही होता..!!
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खटकता तो उनको हूँ साहब  जहाँ मैं झुकता नहीं

बाकी  जिन्हें अच्छा लगता हूँ  वो मुझे कही झुकने नहीं देते
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यूँ तो ज़िंदगी ने हमें बहुत कुछ दिया..
ज़िक्र उसी का करते रहे जो हासिल नहीं हुआ..!!
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