जबसे तुम्हारा नाम मेरे जेहन में आया है हर पल
मुझ पर इक सरूर सा छाया रहता है
ज़िंदगी का गणित हमेशा दो दूनी चार ही नहीं होता।कभी पाँच कभी तीन कभी चालिस , चार सौ , चार लाख तो कभी कभी एकदम शून्य भी हो जाता है।
कुछ ख़्वाहिशों को राह का पत्थर कहा गया,
फिर ठोकरों को ख़ुद का मुक़द्दर कहा गया !!
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