[12/13, 6:25 PM] Bansi Lal: रौशनी अब राह से भटका भी देती है मियाँ
उस की आँखों की चमक ने मुझ को बे-घर कर दिया
[12/13, 6:26 PM] Bansi Lal: हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को
यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
[12/13, 6:27 PM] Bansi Lal: ज़िंदगी भर तो हुई गुफ़्तुगू ग़ैरों से मगर
आज तक हम से हमारी न मुलाक़ात हुई
[12/13, 6:28 PM] Bansi Lal: दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
[12/13, 6:29 PM] Bansi Lal: सोच उन की कैसी है कैसे हैं ये दीवाने
इक मकाँ की ख़ातिर जो सौ मकाँ जलाते हैं
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