वो बख़्शे उजाले किसी सुब्ह को
कोई शाम रौशन सुहानी करे
💐🌺💐
सुनी हिकायत-ए-हस्ती तो दरमियाँ से सुनी
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
🌺💐🌺
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
💐🌺💐
रिश्ता कुछ यूँ उनसे बढने लगा...
हम उन्हें लिखने लगे और वो हमें पढने लगा...
🌺💐🌺
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर हो छुपायें कैसे,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक ऩज़र आयें कैसे
💐🌺💐
वक्त के साथ गर न चल पाए,
भीड़ पीछे की, रौंद डालेगी..!
🌺💐🌺
जो हाथ बढ़ाकर भी “कोशिश” न मयस्सर हो
हाथों को वो फैलाकर हासिल नहीं हो सकता
💐🌺💐
गर कुछ भी ख़बर होती अंजाम-ए-गुलिस्ताँ की
हम अपने नशेमन को ख़ुद आग लगा देते
🌺💐🌺
बस यही सोचकर किसी से शिकवा ना किया मैंने...
कि अपनी जगह हर इंसान सही हुआ करता है...
💐🌺💐
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है,
पहले यह तय हो कि इस घर को बचायें कैसे
🌺💐🌺
उम्र भर सीखते रहे लहरों से लड़ने का हुनर,
मालूम ना था कि कातिल तो किनारे पर हैं l
💐🌺💐
No comments:
Post a Comment