वो ही करते रहे चढ़ते हुए सूरज को सलाम
जो किसी ढलती हुई शाम से वाक़िफ़ नहीं थे
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लहरो पे एक दिन तेरी तस्वीर आएगी
काग़ज़ को हमने आज नदी में बहा दिया
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सबक़ "ज़िंदगी" से बस इतना लिया
यूँ तो "साहिल" पर चले निरन्तर सदा , पर
"समन्दर" की "लहरों" संग समझौता किया
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मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ,
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये...
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