जिंदगी, दोस्तों से नापी जाती है,
तरक्की, दुश्मनों से...
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तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत, हम अपने ग़म से कम ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम ख़ाली, न हम ख़ाली
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ख़ाक थी और हम जिस्मो जान कहते रहे,
चन्द ईंटो को हम ता'उम्र मकान कहते रहे,,
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उन से मिलते थे तो सब कहते थे क्यूँ मिलते हो
अब यही लोग न मिलने का सबब पूछते हैं
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यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है,
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
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