जी रहे है तेरी शर्तो के मुताबिक़ ए जिंदगी,
दौर आएगा कभी, हमारी फरमाइशो का भी...
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कहते है हो जाता है संगत का असर....
पर काँटों को आज तक नहीं आया, महकने का सलीका... !!!!
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खाली पन्ने और मुस्कुराता हुआ कवर....
कुछ यही कहानी है, जिन्दगी की किताब की....
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कल की कल है कल जब आएगा तो समझा जाएगा
आज तो साक़ी ने दिल का बोझ हल्का कर दिया
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जरा सा वक़्त लगता है कहीं से उठ के जाने में
मगर फिर लौटकर आने में कितनी देर लगती है
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बच्चों को पैरों पर,खड़ा करना था,
पिता के घुटने,इसी में जवाब दे गये...!
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लमहों में क़ैद कर दे जो सदियों की चाहतें,
हसरत रही के ऐसा कोई अपना तलबगार हो...
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एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें ‘फ़ाकिर’,
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया
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झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी,
रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ...
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"मतलब" का वजन बहुत ज्यादा होता है, तभी तो
"मतलब" निकलते ही रिश्ते हल्के हो जाते है.।।
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