बहुत खामोश है फिज़ा, कोई कारवां गुजरा हैं,
अपनों के इन्त़जार मे ,कोई अपना गुजरा हैं।
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ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
शौक़ लेकिन दिल में वापस लौट कर आने का था
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ख्वाहिशें आज भी “खत” लिखती हे मुझे....
बेखबर इस बात से कि, जिंदगी अब अपने “पते” पर नही रहती....
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यूँ तो दुनिया में जीने के बहाने हैं बहुत
रह रह के उन्हीं का ख़्याल आए तो कोईक्या करे
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एहसासों के पांव नहीं होते फिर भी दिल तक पहुंच ही जाते हैं..
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