Tuesday, 31 October 2017

I am back :

मुन्तज़िर मैं ही नहीं रहता किसी आहट का

कान दरवाज़े पे उसके भी लगे रहते हैं
🌺💐🌺
हर्फ़- हर्फ़  बयाँ करता है मेरे अल्फाजों का

मेरे हर खयाल का ताल्लुक  तुझसे  है॥
💐🌺💐
कर दी ना बर्बाद फिर , अच्छी खासी शाम 

कमज़र्फों के हाथ में , और दीजिये जाम
🌺💐🌺
फिर से कर दे कोई सजा मुकर्रर

या इंतिहा कर दे इस कशमकश  की॥
💐🌺💐
आदत बहुत बुरी है कि,, आदत बना लेते है हम

मुमकिन होता नहीं जो,, वो चाहत बना लेते है हम॥
🌺💐🌺
गिरना ही था जो आपको.. तो सौ मक़ाम थे.,

ये क्या किया.. कि निगाहों से गिर कर तमाशा बन गए…
💐🌺💐
तुम हो शामिल, बस तब तक महफ़िल चलेगी,

उसके बाद, बस कुछ लोग रहेंगे और भीड़ दिखेगी..
🌺💐🌺
मेरे घर से मयखाना इतना करीब ना था  ऐ दोस्त।।।

तु दुर होता गया और मयखाना करीब आ गया।।।
💐🌺💐

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