Wednesday, 8 February 2017

रौशनी:

रोशनी घबरा गयी देख कर अंधेरा मेरा,
कुछ इस कदर से जीता हूँ मैं उजालो मे!!!

कभी हमें अपनी जान बताते थे आज मसरूफ कह के कतराते हैं |
कोई उनको बताये उनके बदले तेवर से हम हर पल मरते जाते हैं||

अपने वजुद पे इतना तो यकिन है मुझे, कोई छोड तो सकता है मुझे पर भुल नहीं सकता।

उससे एक बार तो रूठूँ मैं, उसी की तरह .. और मेरी तरह से वो मुझको मनाने आये

यहाँ गरीब को मरने की जल्दी इसलिए भी है,
ज़िन्दगी की कशमकश में कहीं कफ़न महंगा न हो जाए...

रहबरो को रोज कोसे जा रहे है।
आप फिर किसके भरोसे जा रहे है?

ये फासले तेरी गलियों के हमसे तय ना हुए
हज़ार बार रूके हम हज़ार बार चले

शोला था जल बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदाएं मुझे न दो ...

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