Friday 6 August 2021

उलझनो को बढ़ाने की ज़रूरत क्या हैछोड़ना ही है अगर तो बहानो की ज़रूरत क्या है..!!

उलझनो को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
छोड़ना ही है अगर तो बहानो की ज़रूरत क्या है..!!

खाली लिफाफे की तरह होते हैं कुछ रिश्ते
जिनके भीतर कुछ भी नहीं होता 
और हम उन्हे सम्भाल कर रखते है

और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी 
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं

अपने बुझने का सबब तो जानता है हर चराग़
किसमें हिम्मत है मगर खुलकर हवा का नाम ले...

If there's a book you really want to read, but it hasn't been written yet, then you must WRITE it.

 *Let Them Lose You :*

You need to let people lose you..
Let them go along with the crowd... 
Let them believe what they want to believe...
Let them think they have better. Let them sleep on your worth..

*Because in due time they will realize the mistake they made, and it will be just enough time for you to accept that you're better off without them.*

जिंदगी की कसौटी से हर रिश्ता गुजर गया,,
कुछ निकले "खरे सोने " कुछ का पानी उतर गया....

 "निस्वार्थ" भाव से "कर्म" करिए, 
इस "धरा" का,  इस "धरा" पर ही,  सब "धरा" रह जाएगा...।।

एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तक,
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

I over-analyze situations because I’m scared of what will happen if I’m not prepared for it.

कहां ज़ख्म खोल बैठा, पगले..!
ये नमक का "शहर"  है....

मेहनत लगती है सपनो को सच बनाने में,
हौसला लगता है
बुलन्दियों को पाने में,

बरसो लगते है जिन्दगी बनाने में,
जिन्दगी फिर भी कम पडती है
रिश्ते निभाने में..
:बंसी

 जो कभी ना भर पाए, ऐसा भी एक घाव है
जी हां, उसका नाम लगाव है..!

आवाज़ देने से ही कारवाँ नहीं रुका करते; 
 देखा यह भी जाता है पुकारा किसने है

 ज़रा सी रंजिश पर न छोड़ किसी अपने का दामन,
ज़िंदगी बीत जाती है अपनों को अपना बनाने में…

दिल की खुश्क दीवारों को ,अश्कों की नमी लाजमी है...
रूह को सुकून हो क़यामत सा,दर्द की आह लाजमी है . ...

If you can’t figure out where you stand with someone,
it might be time to stop standing and start walking.

 सबको खुश रखना, जिंदा मेंढकों को 
तोलने जैसा है..
एक को बिठाओ 
तो दूसरा कूद जाता है..

अब की बार गुम नहीं हुए हैं हम,
इस बार तुमने खो दिया है हमें।

 *अच्छे के साथ अच्छे बनें,पर बुरे के साथ बुरे नहीं*
(हीरे से हीरा तराशा जाता है,
कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं किया जाता।)

शब्दों का सही चयन
आपके लेखन को निखार देता है

इश्क आशियाना नहीं,
एहसास ढूंढता है...
 
ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है,
बुलंदी से कभी ज़र्रों  का अंदाज़ा नहीं होता…

जहां  विश्वास होता है,
वहीं विश्वासघात भी होता है......

 शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा ...क्या करते,
घर  तो  अपने  ही  चराग़ों से जला ...क्या करते…

The man who views the world at 50, 
the same way he viewed it at 20
has wasted 30 years of his life.

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी 
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

हर गम छुपा लेते हैं..... जो बड़ी सादगी से
उन्हें हर हाल में मुस्कुराने का... तरीका आ गया!!

We suffer more often in imagination than in reality.
Our reaction to a situation literally has the power to change the situation itself.

जब भी ज़िंदगी को क़रीब से देखा...
कुछ क़रीब के लोगों को... बहुत दूर देखा....

गलत  फ़हमियों   में  जवानी  गुज़ारी,
कभी वो न समझे,कभी हम न समझे.....

चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
न तुम याद आओ न हम याद आएँ

वों खामोश बैठे रहे ,
मैं सुनता रहा..

दुनिया की शोहरतें हैं उन्हीं के नसीब में
अंदाज़ जिनको बात बनाने के आ गए...

जब इंसान की जरूरत बदल जाती है,
उसके बात करने का लहजा भी बदल जाता ..

छोड़ना पड़ता है, कुछ जोड़ना पड़ता है!!
मेरे यार आसाँ कहाँ है जिंदगी....

क्या मशवरा क्या सल्लाह कीजिए,
जाने की ज़ब ठानी है.. जाने दीजिए..

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