गलत फ़हमियों में जवानी गुज़ारी,
कभी वो न समझे,कभी हम न समझे.....
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
न तुम याद आओ न हम याद आएँ
वों खामोश बैठे रहे ,
मैं सुनता रहा..
दुनिया की शोहरतें हैं उन्हीं के नसीब में
अंदाज़ जिनको बात बनाने के आ गए...
जब इंसान की जरूरत बदल जाती है,
उसके बात करने का लहजा भी बदल जाता ..
छोड़ना पड़ता है, कुछ जोड़ना पड़ता है!!
मेरे यार आसाँ कहाँ है जिंदगी....
क्या मशवरा क्या सल्लाह कीजिए,
जाने की ज़ब ठानी है.. जाने दीजिए..
हम महानता के सबसे करीब तब होते हैं,
जब हम विनम्रता में महान होते हैं।
रबींद्रनाथ टैगोर
जो दुवाओं से निकल गया....
उसे बद्दुवाओं में क्या रखना.....
वो रात ऐसी कठोर उदासी की रात थी
जलते चराग़ ख़ुदको बुझाकर चले गए..!
WE'RE ALL IN THE SAME GAME, JUST DIFFERENT LEVELS.
DEALING WITH THE SAME HELL, JUST DIFFERENT DEVILS.
किसी को तो पसंद
आएगी नादानियाँ मेरी
सारा शहर
समझदार तो नहीं..
गति इतनी भी मध्यम न हो
आरंभ और अंत एक लगे...
बहुत फ़र्क हो जाता है..
हक़ छोड़ देने और हक़ खो देने में..!
शराफ़त ने मुझको कहीं का न छोड़ा
रक़ीब अपने ख़त मुझसे लिखवा रहे हैं
हर सजा कबूल कर ली सर झुका कर हमने
कसूर बस ये था कि बेकसूर थे हम...!!
खुशी सिर्फ़ दुसरों को
दिखाने के लिए नहीं ...
बल्कि अपनी तसल्ली के
लिए होनी चाहिए ..
:बंसी
सम्बन्धों का प्रवाह रुकने के बाद
उनका निर्वाह भी बोझ बन जाता है ...!
हिफ़ाज़त....वो बड़ी ख़ूबी से करता है
हवा भी चलती रहती है दिया भी जलता रहता है
No comments:
Post a Comment