Tuesday, 3 August 2021

*मैथिलीशरण गुप्त की सुन्दर रचना*



तप्त हृदय को, सरस स्नेह से, जो सहला दे, *मित्र वही है। *

रूखे मन को, सराबोर कर, जो नहला दे, *मित्र वही है । *

प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को, जो बहला दे, * मित्र वही है । *

अश्रु बूँद की, एक झलक से, जो दहला दे, *मित्र वही है। *

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