यूँ ही सस्ते में नहीं बिक गये तुम,
तुम्हारी औकात का पता
था खरीददारों को..
“स्मृति भी आँख बन जाती है
जब अँधेरा हो घना
और जाना हो आगे...”
कभी बे सबब भी बात कर....
हर बार कोई वजह हो जरूरी नहीं ?
हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना,
लगी हैं ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए हैं
“एक समाज को
अगर मारना हो
तो सबसे पहले उसके युवाओं को
सभ्य भाषा व सहनशील संस्कृति से दूर करो
और ध्यान रहे
यथासंभव इतिहास उसे बताया ही न जाये।”
तुम्हारी औकात का पता
था खरीददारों को..
“स्मृति भी आँख बन जाती है
जब अँधेरा हो घना
और जाना हो आगे...”
कभी बे सबब भी बात कर....
हर बार कोई वजह हो जरूरी नहीं ?
हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना,
लगी हैं ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए हैं
“एक समाज को
अगर मारना हो
तो सबसे पहले उसके युवाओं को
सभ्य भाषा व सहनशील संस्कृति से दूर करो
और ध्यान रहे
यथासंभव इतिहास उसे बताया ही न जाये।”
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