एक समंदर है जो काबु करना है,
और एक कतरा है जो मुझसे सम्भाला नहीं जाता.....
एक उम्र है जो बितानी है तेरे बग़ैर
औऱ एक लम्हा है जो मुझसे गुजारा नहीं जाता.....
+लोग शोर से जाग जाते है साहब मुझे..
एक इंसान की खामोशी सोने नहीं देती..
ख़ुद को यूँ बाँध कर बैठा हूँ अपने अस्तित्व में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं
मुमकिन नहीं हर वक्त
मेहरबान रहे जिंदगी,
कुछ लम्हे हमें जीने का
तजुर्बा भी सिखाते है.
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
दौलत सिर्फ
रहन सहन का
स्तर बदल सकती है,
बुद्धि नियत और
तक़दीर" नही..
जहाँ हम नहीं होते है..
वहाँ हमारे गुण व अवगुण हमारा प्रतिनिधित्व करते है......
खत क्या लिखा इंसानियत के नाम पे,
डाकिया ही गुजर गया पता ढूंढते ढूंढते..
आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है
“दुख उन्हें घेरता है जो सुख को सलीक़े से नहीं सहते।”
अपने हर लफ्ज़ में कहर रखते हैं हम,
रहें खामोश फिर भी असर रखते हैं हम....!!!!
और एक कतरा है जो मुझसे सम्भाला नहीं जाता.....
एक उम्र है जो बितानी है तेरे बग़ैर
औऱ एक लम्हा है जो मुझसे गुजारा नहीं जाता.....
+लोग शोर से जाग जाते है साहब मुझे..
एक इंसान की खामोशी सोने नहीं देती..
ख़ुद को यूँ बाँध कर बैठा हूँ अपने अस्तित्व में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं
मुमकिन नहीं हर वक्त
मेहरबान रहे जिंदगी,
कुछ लम्हे हमें जीने का
तजुर्बा भी सिखाते है.
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
दौलत सिर्फ
रहन सहन का
स्तर बदल सकती है,
बुद्धि नियत और
तक़दीर" नही..
जहाँ हम नहीं होते है..
वहाँ हमारे गुण व अवगुण हमारा प्रतिनिधित्व करते है......
खत क्या लिखा इंसानियत के नाम पे,
डाकिया ही गुजर गया पता ढूंढते ढूंढते..
आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है
“दुख उन्हें घेरता है जो सुख को सलीक़े से नहीं सहते।”
अपने हर लफ्ज़ में कहर रखते हैं हम,
रहें खामोश फिर भी असर रखते हैं हम....!!!!
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