जंग में अक़्ल से अधिक ग़ुस्सा
सिर्फ़ दुश्मन के काम आता है
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
जब हम अकेले हों
तब अपने विचारों को संभालें
और जब हम सबके बीच हों
तब अपने शब्दों को संभालें..
रिश्ते जब मजबूत होते हैं
बिन कहे महसूस होते हैं
"बातों में दिखता है तजुर्बा,
चोट तुम्हारी भी गहरी थी।।"
कमाल उसने किया और मैंने हद कर दी !
के खुद बदल गया उसकी नज़र बदलने तक !!
बदल जाते है वो लोग अक्सर वक़्त की तरह ,
जिनको हद्द से ज़्यादा वक़्त दिया जाता है...!!
वफ़ा का सबूत और क्या दूं तुझे ....
तेरी कश्ती में छेद था
फिर भी हमने सफ़र से इंकार नहीं किया
बुराई की विशेषता यह है कि यह कभी हार नहीं मानती परन्तु अच्छाई की विशेषता यह है कि यह कभी हारती नहीं !!!
कुछ लोग तो आपसे सिर्फ इसलिए नफ़रत करते हैं.....
क्योंकि, बहुत सारे लोग आपकी इज्जत करते हैं...
शिद्दते दर्द से शर्मिंदा नहीं मेरी वफ़ा.......
दोस्त गहरे हैं.... तो फिर ज़ख्म भी गहरे होंगे...!
जब मैं डूबा तो समन्दर को भी हैरत हुई कि
अजीब शख़्स है किसीको पुकारता ही नहीं।
No comments:
Post a Comment