Friday, 14 February 2020

बदलें हैं मिज़ाज, कुछ दिनों से उनके ..

बदलें हैं मिज़ाज, कुछ दिनों से उनके ..
‘बात’ तो करते हैं वो, मगर बातें नहीं करते


फूलों का बिखरना तो, मुक़द्दर ही था लेकिन,
कुछ इस में हवाओं की, सियासत भी बहुत थी


कलम लिख नहीं पाती हर उदास लम्हें को
कुछ जज़्बात दिल की गहराइयों में डूब जाते हैं!!


ज़िन्दगी की किताब के हर पन्ने को कुछ इस तरह लिखना
अगर कभी महफ़िल में पढ़ी जाये तो शोर गज़ब का हो


मूँह में जुबान सब रखते हैं मगर कमाल वो करते हैं
जो सम्भाल के रखते हैं..


तेज़ हवा से टकराने में एक हुनर था कश्ती का
लोग तमाशा देख रहे थे बैठे दूर किनारों से


संघर्ष प्रकृति का आमन्त्रण है..
जो स्वीकार करता है, वही आगे बढ़ता है...


“सुख सहना सब को नहीं आता
फूल जानते हैं
कैसे ख़ामोशी, आनंद से खिलना है

नदी समझती है
कैसे भरी बरसात को सहेजना है!

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