जब भी पूछा दिल से सुकून का पता
उसने हर बार तेरा ही नाम लिया...
एक "हसरत" थी, कि वो भी कभी हमें मनाएं
उसने हर बार तेरा ही नाम लिया...
एक "हसरत" थी, कि वो भी कभी हमें मनाएं
पर कम्बख़्त ये दिल कभी "रूठा" ही नहीं उनसे
क्षमा संस्कार है..
क्षमा संस्कृती है..
क्षमा मन की श्रेष्ट कृती है..
पहचान की नुमाईश जरा कम करो
जहाँ "मैं" लिखा है .... उसे "हम" करो
झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा
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