Wednesday, 7 March 2018

कई झुठे:

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

कई झूटे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है ....
🍃🌹🍃
जरूरत हो तभी जलाओ अपने आप को,

उजालों में चिरागों की अहमियत नहीं होती!
🌹🍃🌹
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था

वो भी आख़िर मेरे जैसा हो गया होना ही था
🥀🍂🥀
आसमान इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,

भूल जाता है ज़मीन से ही नज़र आता है
🍃🥀🍃
जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है

अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है
🥀🍃🥀
तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम

बात पूरी भी न होगी और घर आ जाएगा
🍂🥀🍂
रास्ता तेरे साथ इक बार क्या भटके हम
मंजिलों की ख्वाहिश ही ना रही

पा लिया तुम में खोकर इतना के
अब कुछ पाने की फरमाइश ही ना रही.
🌹💓🌹
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है

कितना झुक कर किसे सलाम करो
🥀🍃🥀

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