बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी
डूबने वाले तेरे हाथ से साहिल तो गया
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दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
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ग़लतफ़हमी की गुंजाइश नहीं सच्ची मुहब्बत में
जहां किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है
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दुश्मनी नींद से कर के हूँ पशेमानी में
किस तरह अब मेरे ख्वाबों का गुजारा होगा
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ज़ख़्म अपनों ने दिए कुछ इस कदर
ग़ैर भी मरहम लगाने आ गए
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किताब-ए-दर्द का सूखा गुलाब, नहीं होना मुझको
इश्क़ में, इस कदर भी कामयाब, नहीं होना मुझको
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मुझ को बीमार करेगी, तेरी आदत इक दिन
और फिर तुझ से भी अच्छा नहीं हो पाऊँगा
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रौशनी ढूँड के लाना कोई मुश्किल तो न था
लेकिन इस दौड़ में हर शख़्स को जलते देखा
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जा के कोहसार* से सर मारो कि आवाज़ तो हो,
खस्ता दीवारों से माथा नहीं फोड़ा करते...
*पहाड़
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