ज़िन्दगी दर्द दे उसका ग़िला नहीं ;
मुद्दआ ये कि ग़मों की दवा नहीं करती.
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जिस से मुंह फेर के रस्ते की हवा गुजरी है
किसी उजड़े हुए आँगन का दिया लगता है
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न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
इक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
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कुछ नहीं इल्म-ओ-हुनर रुतबा-ओ-फ़न दुनिया में
सभी को नाप का मिलता है कफ़न दुनिया में
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अपने खिलाफ बाते, खामोशी से सुन लो....
यकीन मानो, वक्तबेहतरीन जवाब देगा....
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नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में,
किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता !
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इन चराग़ों में तेल ही कम था...
क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे...
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मेहरबानी ना सही इक ज़ख़्म ही दे दे मोहसीन,
मेसूस तो हो की कोई हमें भुला नहीं अभी...
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