🌟 *कर्ण की उदारता*
एक बार भगवान श्रीकृष्ण कर्ण की उदारता की बार-बार प्रशंसा कर रहे थे, यह सुनकर अर्जुन ने कहा : हे पार्थ, हमारे बड़े भाई धर्मराज जी से बढ़कर उदार तो कोई है ही नहीं, फिर आप कर्ण की इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं ?
भगवान ने कहा : समय आने पर मै ये बात तुम्हे समझा दूंगा !
कुछ दिनों के बाद श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेष बनाया और अर्जुन को साथ लेकर धर्मराज युधिष्ठिर के राजभवन पहुंचे और धर्मराज से कहा : हमको एक मन चंदन की सूखी लकड़ी चाहिये, आप कृपा करके मंगा दें !
उस दिन जोर की वर्षा हो रही थी, कहीं से भी लकड़ी लाने पर वह भीग जाती, युधिष्ठिर ने नगर मे अपने सेवक भेजे, किन्तु कहीं भी सूखी लकड़ी सेर-आध-सेर से अधिक नही मिली !
तब युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर कहा : आज सूखा चंदन नही मिल रहा है, आप कोई और वस्तु मांग लें ! भगवान ने कहा : सूखा चन्दन नही मिलता तो न सही, हमें कुछ और नही चाहिये !
वहां से अर्जुन को साथ लिये उसी वेश मे श्रीकृष्ण कर्ण के यहां पहुंचे और कहा : हमें इसी समय एक मन सूखी लकड़ी चाहिये !
कर्ण ने दोनों ब्राह्मणों को आसन पर बैठाकर उनकी पूजा की, फिर धनुष बाण उठाकर कर्ण ने अपने महल के चंदन के मूल्यवान किवाड़, पलंग, चौखट आदि तोड़कर लकड़ियों का ढेर लगा दिया
तब श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा : सूखी लकड़ियों के लिये तुमने इतनी मूल्यवान वस्तुयें क्यों नष्ट की ?
कर्ण हाथ जोड़कर बोले : इस समय वर्षा हो रही है, बाहर से लकड़ी मंगाने मे देर होती और लकड़ी भी भीग जाती, ये सब वस्तुयें तो फिर बन जायेगीं किन्तु अतिथि को निराश होना पड़े या कष्ट हो तो वह दुःख मेरे हृदय से कभी दूर नही होगा !
भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया और वहां से वापस आकर अर्जुन से कहा : अर्जुन, धर्मराज युधिष्ठिर के भवन के द्वार, चौखटें, पलंग भी चंदन के हैं लेकिन चन्दन की लकड़ी मांगने पर उन वस्तुओं को देने की याद धर्मराज को नही आयी, पर कर्ण ने अपने घर की मूल्यवान वस्तुयें तोड़कर लकड़ी दे दी !
*दान-धर्म मे जिसके प्राण बसते हैं उसी को समय पर याद आता है कि वस्तु कैसे देनी है !*
कर्ण स्वभाव से उदार हैं और धर्मराज युधिष्ठिर विचार करके धर्म पर स्थिर रहते हैं, इसीलिये हमें परोपकार, उदारता, त्याग तथा अच्छे कर्म करने का स्वभाव बना लेना चाहिये !
जो लोग नित्य अच्छे कर्म नही करते और सोचते हैं कि किसी बड़े अवसर पर महान कार्य करेंगे, तो उनको बड़े अवसर आने पर भी कुछ सूझता ही नही और जो छोटे-छोटे अवसरों पर भी त्याग तथा उपकार करने का स्वभाव बना लेता है, वही महान कार्य करने मे सफल होता है...!!
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