एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा की भाई देर हो जाती है जल्दी पान लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नही होती।
एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाभियाँ होती हैं।
एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
आप कर्मयोगी पुरुष हैं ओर मैनेजर भगवान।
अाप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये।पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो की भगवान अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये ।
Thursday, 30 June 2016
कर्म और भाग्य:
अनजाने कर्म का फल:
अनजाने कर्म का फल
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लें कि किसी के भी और किसी भी पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से कभी नहीं करना यानी किसी की भी बुराई या चुगली कभी नहीं करनी हैं ।
लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं तो हमें ही इसका फल आज नहीं तो कल जरूर भुगतना ही पड़ेगा !!!!
गलत फहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प हैं:
UPeople disparage knowing and the intellectual life, and urge doing. I am content with knowing, if only I could know.
Blind commitment to a theory is not an intellectual virtue: it is an intellectual crime.
Correction does much, but encouragement does
more. They who do not live up to their ideals soon find that they have lost ...
गलत फहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प है ,
हर ईंट सोचती है कि दीवार बस मुझसे जिन्दा है..!
उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!
“Destiny is not a matter of chance,it is a matter of choice;it is not a thing to be waited for,it is a thing to be achieved.”
अब जो रिश्तों में घिरा हूँ तो खुला है मुझ पर..
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते....!
ज़रा सा हट के चलता हूँ ज़माने की रीयवायत से,
के जिन पे बोझ डालूँ वो कंधे याद रखता हूँ...
गलत फहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प ह
UPeople disparage knowing and the intellectual life, and urge doing. I am content with knowing, if only I could know.
Blind commitment to a theory is not an intellectual virtue: it is an intellectual crime.
Correction does much, but encouragement does
more. They who do not live up to their ideals soon find that they have lost ...
गलत फहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प है ,
हर ईंट सोचती है कि दीवार बस मुझसे जिन्दा है..!
उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!
“Destiny is not a matter of chance,it is a matter of choice;it is not a thing to be waited for,it is a thing to be achieved.”
अब जो रिश्तों में घिरा हूँ तो खुला है मुझ पर..
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते....!
ज़रा सा हट के चलता हूँ ज़माने की रीयवायत से,
के जिन पे बोझ डालूँ वो कंधे याद रखता हूँ...
Tuesday, 28 June 2016
The 18th Camel – A story about innovative Problem Solving !
A father left 17 camels as an asset for his three sons.
When the father passed away, his sons opened up the will. The Will of the father stated that the eldest son should get half of 17 camels while the middle son should be given 1/3rd (one-third).The youngest son should be given 1/9th (one-ninth) of the 17 camels.
As it is not possible to divide 17 into half or 17 by 3 or 17 by 9, three sons started to fight with each other.
So, the three sons decided to go to a wise man.
The wise man listened patiently about the Will. The wise man, after giving this thought, brought one camel of his own and added the same to 17. That increased the total to 18 camels.
Now, he started reading the deceased father’s will. Half of 18 = 9. So he gave the eldest son 9 camels 1/3rd of 18 = 6. So he gave the middle son 6 camels 1/9th of 18 = 2. So he gave the youngest son 2 camels.
Now add this up: 9 plus 6 plus 2 is 17 and this leaves one camel, which the wise man took back.
The 18th camel story may sound all too magical and perhaps too simple. Sometimes the solution is simple. To see the solution, however, the parties must be willing to collaborate in order to discover their real interests. Also, they must want to use a joint problem-solving approach rather than a "demands, confrontation, and concession" method that at best produces compromise.
The attitude of negotiation and problem solving is to find the 18th camel i.e. the common ground. Once a person is able to find the common ground, the issue is resolved. It is difficult at times. However, to reach a solution, the first step is to believe that there is a solution. If we think that there is no solution, we won’t be able to reach any!
It’s interesting how much this story resembles many of the difficult negotiations we get involved in. They start off like the seemingly unsolvable problem of dividing 17 camels. Somehow what we need to do is step back from the situation like the wise old man. Look at the situation through fresh eyes and come up with an 18th camel.
What solution do you have to offer to the desperate situations around you? What comfort or resolution can your wisdom and generosity bring to those who come into your path? Are you riding on the 18th camel?
When confronted with a challenging problem, remember the 18th camel and try to come up with an innovative solution.
जीवन में ठक-ठक तो चलती ही रहेगी।।
एक आदमी घोड़े पर कहीं जा रहा था, घोड़े को जोर की प्यास लगी थी।
कुछ दूर कुएं पर एक किसान बैलों से "रहट" चलाकर खेतों में पानी लगा रहा था।
मुसाफिर कुएं पर आया और घोड़े को "रहट" में से पानी पिलाने लगा।
पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, "रहट" की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता।
फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर "रहट" की ठक-ठक से डरकर हट जाता।
मुसाफिर कुछ क्षण तो यह देखता रहा, फिर उसने किसान से कहा कि थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक ले ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो और घोड़ा पानी पी सके।
किसान ने कहा कि जैसे ही बैल रूकेंगे कुएँ में से पानी आना बन्द हो जायेगा, इसलिए पानी तो इसे ठक-ठक में ही पीना पड़ेगा।
ठीक ऐसे ही यदि हम सोचें कि जीवन की ठक-ठक (हलचल) बन्द हो तभी हम भजन, सन्ध्या, वन्दना आदि करेंगे तो यह हमारी भूल है।
हमें भी जीवन की इस ठक-ठक (हलचल) में से ही समय निकालना होगा, तभी हम अपने मन की तृप्ति कर सकेंगे, वरना उस घोड़े की तरह हमेशा प्यासा ही रहना होगा।
सब काम करते हुए, सब दायित्व निभाते हुए प्रभु सुमिरन में भी लगे रहना होगा, जीवन में ठक-ठक तो चलती ही रहेगी।।
Monday, 27 June 2016
You should read it:
“When I got home that night as my wife served dinner, I held her hand and said, I’ve got something to tell you. She sat down and ate quietly. Again I observed the hurt in her eyes.
Suddenly I didn’t know how to open my mouth. But I had to let her know what I was thinking. I want a divorce. I raised the topic calmly. She didn’t seem to be annoyed by my words, instead she asked me softly, why?
I avoided her question. This made her angry. She threw away the chopsticks and shouted at me, you are not a man! That night, we didn’t talk to each other. She was weeping. I knew she wanted to find out what had happened to our marriage. But I could hardly give her a satisfactory answer; she had lost my heart to Jane. I didn’t love her anymore. I just pitied her!
With a deep sense of guilt, I drafted a divorce agreement which stated that she could own our house, our car, and 30% stake of my company. She glanced at it and then tore it into pieces. The woman who had spent ten years of her life with me had become a stranger. I felt sorry for her wasted time, resources and energy but I could not take back what I had said for I loved Jane so dearly. Finally she cried loudly in front of me, which was what I had expected to see. To me her cry was actually a kind of release. The idea of divorce which had obsessed me for several weeks seemed to be firmer and clearer now.
The next day, I came back home very late and found her writing something at the table. I didn’t have supper but went straight to sleep and fell asleep very fast because I was tired after an eventful day with Jane. When I woke up, she was still there at the table writing. I just did not care so I turned over and was asleep again.
In the morning she presented her divorce conditions: she didn’t want anything from me, but needed a month’s notice before the divorce. She requested that in that one month we both struggle to live as normal a life as possible. Her reasons were simple: our son had his exams in a month’s time and she didn’t want to disrupt him with our broken marriage.
This was agreeable to me. But she had something more, she asked me to recall how I had carried her into out bridal room on our wedding day. She requested that every day for the month’s duration I carry her out of our bedroom to the front door ever morning. I thought she was going crazy. Just to make our last days together bearable I accepted her odd request.
I told Jane about my wife’s divorce conditions. . She laughed loudly and thought it was absurd. No matter what tricks she applies, she has to face the divorce, she said scornfully.
My wife and I hadn’t had any body contact since my divorce intention was explicitly expressed. So when I carried her out on the first day, we both appeared clumsy. Our son clapped behind us, daddy is holding mommy in his arms. His words brought me a sense of pain. From the bedroom to the sitting room, then to the door, I walked over ten meters with her in my arms. She closed her eyes and said softly; don’t tell our son about the divorce. I nodded, feeling somewhat upset. I put her down outside the door. She went to wait for the bus to work. I drove alone to the office.
On the second day, both of us acted much more easily. She leaned on my chest. I could smell the fragrance of her blouse. I realized that I hadn’t looked at this woman carefully for a long time. I realized she was not young any more. There were fine wrinkles on her face, her hair was graying! Our marriage had taken its toll on her. For a minute I wondered what I had done to her.
On the fourth day, when I lifted her up, I felt a sense of intimacy returning. This was the woman who had given ten years of her life to me. On the fifth and sixth day, I realized that our sense of intimacy was growing again. I didn’t tell Jane about this. It became easier to carry her as the month slipped by. Perhaps the everyday workout made me stronger.
She was choosing what to wear one morning. She tried on quite a few dresses but could not find a suitable one. Then she sighed, all my dresses have grown bigger. I suddenly realized that she had grown so thin, that was the reason why I could carry her more easily.
Suddenly it hit me… she had buried so much pain and bitterness in her heart. Subconsciously I reached out and touched her head.
Our son came in at the moment and said, Dad, it’s time to carry mom out. To him, seeing his father carrying his mother out had become an essential part of his life. My wife gestured to our son to come closer and hugged him tightly. I turned my face away because I was afraid I might change my mind at this last minute. I then held her in my arms, walking from the bedroom, through the sitting room, to the hallway. Her hand surrounded my neck softly and naturally. I held her body tightly; it was just like our wedding day.
But her much lighter weight made me sad. On the last day, when I held her in my arms I could hardly move a step. Our son had gone to school. I held her tightly and said, I hadn’t noticed that our life lacked intimacy. I drove to office…. jumped out of the car swiftly without locking the door. I was afraid any delay would make me change my mind…I walked upstairs. Jane opened the door and I said to her, Sorry, Jane, I do not want the divorce anymore.
She looked at me, astonished, and then touched my forehead. Do you have a fever? She said. I moved her hand off my head. Sorry, Jane, I said, I won’t divorce. My marriage life was boring probably because she and I didn’t value the details of our lives, not because we didn’t love each other anymore. Now I realize that since I carried her into my home on our wedding day I am supposed to hold her until death do us apart. Jane seemed to suddenly wake up. She gave me a loud slap and then slammed the door and burst into tears. I walked downstairs and drove away. At the floral shop on the way, I ordered a bouquet of flowers for my wife. The salesgirl asked me what to write on the card. I smiled and wrote, I’ll carry you out every morning until death do us apart.
That evening I arrived home, flowers in my hands, a smile on my face, I run up stairs, only to find my wife in the bed -dead. My wife had been fighting CANCER for months and I was so busy with Jane to even notice. She knew that she would die soon and she wanted to save me from the whatever negative reaction from our son, in case we push through with the divorce.— At least, in the eyes of our son—- I’m a loving husband….
The small details of your lives are what really matter in a relationship. It is not the mansion, the car, property, the money in the bank. These create an environment conducive for happiness but cannot give happiness in themselves.
So find time to be your spouse’s friend and do those little things for each other that build intimacy. Do have a real happy marriage!
If you don’t share this, nothing will happen to you.
If you do, you just might save a marriage. Many of life’s failures are people who did not realize how close they were to success when they gave up.
An Excellent story. Please read through.......
An Excellent story. Please read through................
The Abundance Principle :
Once a man got lost in a desert. The water in his flask had run out two days ago, and he was on his last legs. He knew that if he didn't get some water soon, he would surely die. The man saw a small hut ahead of him. He thought it would be a mirage or maybe a hallucination, but having no other option, he moved toward it. As he got closer, he realized it was quite real. So he dragged his tired body to the door with the last of his strength.
The hut was not occupied and seemed like it had been abandoned for quite some time. The man entered into it, hoping against hope that he might find water inside.
His heart skipped a beat when he saw what was in the hut - a water hand pump...... It had a pipe going down through the floor, perhaps tapping a source of water deep under-ground.
He began working the hand pump, but no water came out. He kept at it and still nothing happened. Finally he gave up from exhaustion and frustration. He threw up his hands in despair. It looked as if he was going to die after all.
Then the man noticed a bottle in one corner of the hut. It was filled with water and corked up to prevent evaporation.
He uncorked the bottle and was about to gulp down the sweet life-giving water, when he noticed a piece of paper attached to it. Handwriting on the paper read : "Use this water to start the pump. Don't forget to fill the bottle when you're done."
He had a dilemma. He could follow the instruction and pour the water into the pump, or he could ignore it and just drink the water.
What to do? If he let the water go into the pump, what assurance did he have that it would work? What if the pump malfunctioned? What if the pipe had a leak? What if the underground reservoir had long dried up?
But then... maybe the instruction was correct. Should he risk it? If it turned out to be false, he would be throwing away the last water he would ever see.
Hands trembling, he poured the water into the pump. Then he closed his eyes, said a prayer, and started working the pump.
He heard a gurgling sound, and then water came gushing out, more than he could possibly use. He luxuriated in the cool and refreshing stream. He was going to live!
After drinking his fill and feeling much better, he looked around the hut. He found a pencil and a map of the region. The map showed that he was still far away from civilization, but at least now he knew where he was and which direction to go.
He filled his flask for the journey ahead. He also filled the bottle and put the cork back in. Before leaving the hut, he added his own writing below the instruction: "Believe me, it works!"
This story is all about life.
It teaches us that We must GIVE before We can RECEIVE Abundantly.
More importantly, it also teaches that FAITH plays an important role in GIVING. The man did not know if his action would be rewarded, but he proceeded regardless. Without knowing what to expect, he made a Leap of Faith.
Water in this story represents the Good things in Life - something that brings a smile to your face. It can be Intangible Knowledge or it can represent Money, Love, Family, Friendship, Happiness, Respect, or any number of other things you Value - Whatever it is that you would like to get out of life - that's water.
The water pump represents the Workings of the Karmic Mechanism.
Give it some "Water" to Work with, and it will RETURN far more than you put in.........!!!
Sunday, 26 June 2016
रिश्ता सबकुछ बदल देता है:
उसे आईलाइनर पसंद था,
मुझे काजल।
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी,
और मैं अदरक की चाय पे।
उसे नाइट क्लब पसंद थे,
मुझे रात की शांत सड़कें।
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे,
मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था।
लेखक बोरिंग लगते थे उसे,
पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता।
वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी,
मैं असम के चाय के बागानों में खोना चाहता था।
मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर सूरज डूबना देखना चाहता था।
उसकी बातों में महँगे शहर थे,
और मेरा तो पूरा शहर ही वो।
न मैंने उसे बदलना चाहा न उसने मुझे।
एक अरसा हुआ दोनों को रिश्ते से आगे बढ़े।
कुछ दिन पहले उनके साथ रहने वाली एक दोस्त से पता चला,
वो अब शांत रहने लगी है,
लिखने लगी है,
मसूरी भी घूम आई,
लाल डिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रही।
आधी रात को अचानक से उनका मन
अब चाय पीने को करता है।
और मैं...
मैं भी अब अक्सर कॉफी पी लेता हूँ
किसी महँगी जगह बैठकर।
How This 10-Minute Routine Will Increase Your Creativity
*How This 10-Minute Routine Will Increase Your Creativity*
Learning to channel your thinking--both conscious and subconscious--creates the conditions that make achieving your goals inevitable.
*"Your subconscious mind works continuously, while you are awake, and while you sleep."--Napoleon Hill*
Your subconscious never rests and is always on duty because it controls your heartbeat,blood circulation, and digestion. It controls all the vital processes and functions of your body and knows the answers to all your problems.
What happens on your subconscious level influences what happens on your conscious level. In other words, what goes on internally, even unconsciously, eventually becomes your reality. As Hill further states, "The subconscious mind will translate into its physical equivalent, by the most direct and practical method available."
Consequently, your goal is to direct your subconscious mind to create the outcomes you seek. Additionally, you want to tap into your subconscious mind to unlock connections and solutions to your problems and projects.
*Here's a simple routine to get started:*
*Ten minutes before going to sleep:*
*"Never go to sleep without a request to your subconscious. --Thomas Edison*
It's common practice for many of the world's most successful people to intentionally direct the workings of their subconscious mind while they're sleeping.
*How?*
Take a few moments before you go to bed to meditate on and write down the things you're trying to accomplish.
Ask yourself loads of questions related to that thing. In Edison's words, make some "requests." Write those questions and thoughts down on paper. The more specific the questions, the more clear will be your answers.
While you're sleeping, your subconscious mind will get to work on those things.
*Ten minutes after waking up:*
Research confirms the brain, specifically the prefrontal cortex, is most active and readily creative immediately following sleep. Your subconscious mind has been loosely mind-wandering while you slept, making contextual and temporal connections. Creativity, after all, is making connections between different parts of the brain.
In a recent interview with Tim Ferriss, Josh Waitzkin, former chess prodigy and tai chi world champion, explains his morning routine to tap into the subconscious breakthroughs and connections experienced while he was sleeping.
*Unlike 80 percent of people between the ages of 18-44 who check their smartphones within 15 minutes of waking up, Waitzkin goes to a quiet place, does some meditation and grabs his journal.*
In his journal, he thought-dumps for several minutes. Thus, rather than focusing on input like most people who check their notifications, Waitzkin's focus is on output. This is how he taps into his higher realms of clarity, learning, and creativity--what he calls, *"crystallized intelligence."*
भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है:
माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।
उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।
बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।
श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।
बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-
"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"
घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"
बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।
ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।
अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।
घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई।
ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।
सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।
बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"
घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."
श्री गिरिराज धरण की जय...
श्री बाल कृष्ण की जय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
उस समय का प्रसंग है जब
केवट भगवान के चरण धो रहा है.
बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान का एक पैर धोता का उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देता है,
और जब दूसरा धोने लगता है तो
पहला वाला पैर गीला होने से
जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
🍃केवट दूसरा पैर बाहर रखता है फिर पहले वाले को धोता है,
एक-एक पैर को सात-सात बार धोता है.
कहता है प्रभु एक पैर कठौती मे रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो.
जब भगवान ऐसा करते है
तो जरा सोचिये क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है दूसरा केवट के हाथो में, भगवान दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मै गिर जाऊँगा ?
🍃केवट बोला - चिंता क्यों करते हो सरकार !
दोनों हाथो को मेरे सिर पर रखकर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेगे ,
जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है,भगवान भी आज वैसे ही खड़े है.
🍃भगवान केवट से बोले - भईया केवट !
मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया.
केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?
🍃भगवान बोले - सच कह रहा हूँ केवट,
अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि
मै भक्तो को गिरने से बचाता हूँ पर
🍃आज पता चला कि,
भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है.
Saturday, 25 June 2016
If it is true it is great:
If it is true it is great.
At age 5 his Father died.
At age 16 he quit school.
At age 17 he had already lost four jobs.
At age 18 he got married.
Between ages 18 and 22, he was a railroad conductor and failed.
He joined the army and washed out there. He applied for law school he was rejected. He became an insurance sales man and failed again.
At age 19 he became a father.
At age 20 his wife left him and took their baby daughter.
He became a cook and dishwasher in a small cafe.
He failed in an attempt to kidnap his own daughter, and eventually he convinced his wife to return home.
At age 65 he retired. On the 1st day of retirement he received a cheque from the Government for $105. He decided to commit suicide, it wasn’t worth living anymore; he had failed so much.
He sat under a tree writing his will, but instead, he wrote what he would have accomplished with his life. He realised there was much more that he hadn’t done. There was one thing he could do better than anyone he knew. And that was how to cook.
So he borrowed $87 against his cheque and bought and fried up some chicken using his recipe, and went door to door to sell them to his neighbours in Kentucky. Remember at age 65 he was ready to commit suicide.
But at age 88 Colonel Sanders, founder of Kentucky Fried Chicken (KFC) Empire was a billionaire.
Moral of the story: Attitude. It's never too late to start all over.
MOST IMPORTANLY, IT'S ALL ABOUT YOUR ATTITUDE. NEVER GIVE UP NO MATTER HOW HARD IT GETS.
आधा किलो आटा
आधा किलो आटा
एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था। एक दिन उसे अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। उसने तत्काल अपने लेखा अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, पता तो चले मेरे पास कुल कितनी सम्पदा है।
सप्ताह भर बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ की सेवा में उपस्थित हुआ। सेठ ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है?” लेखाधिकारी नें कहा – “सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी”
लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ चिंता में डूब गए, ‘तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?’ वे रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते। सेठानी से हालत देखी नहीं जा रही थी। उसने मन स्थिरता व शान्त्ति के किए साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित किया। सेठ को भी यह विचार पसंद आया। चलो अच्छा है, संत अवश्य कोई विद्या जानते होंगे जिससे मेरे दुख दूर हो जाय।
सेठ सीधा संत समागम में पहूँचा और एकांत में मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा। सेठ नें कहा- “महाराज मेरे दुख का तो पार नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान ,विधी आदि करने को तैयार हूँ”
संत ने समस्या समझी और बोले- “इसका तो हल बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो सेठ, बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। उसके न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। अगर वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।”
सेठ को बड़ा आसान उपाय मिल गया। उसे सब्र कहां था, घर पहुंच कर सेवक के साथ क्वीन्टल भर आटा लेकर पहुँच गया बुढिया के झोपडे पर। सेठ नें कहा- “माताजी मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए”
बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए”
सेठ ने कहा- “फिर भी रख लीजिए”
बूढ़ी मां ने कहा- “क्या करूंगी रख के मुझे आवश्यकता नहीं है”
सेठ ने कहा- “अच्छा, कोई बात नहीं, क्विंटल नहीं तो यह आधा किलो तो रख लीजिए”
बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा, आज खाने के लिए जरूरी, आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त की जरूरत नहीं है”
सेठ ने कहा- “तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए”
बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा, कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता है कल के लिए कल प्रबंध हो जाएगा” बूढ़ी मां ने लेने से साफ इन्कार कर दिया।
सेठ की आँख खुल चुकी थी, एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।
वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। संग्रहखोरी तो दूषण ही है। संतोष में ही शान्ति व सुख निहित है।
Friday, 24 June 2016
अल्फ़ाज़ भी असर करते हैं:
ग़ज़ल में बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ ही नहीं सब कुछ
जिगर का ख़ून भी कुछ चाहिए असर के लिए
अल्फाज भी वही असर करते है
जहाँ पर मोहब्बत हो..….
उदास रहता है मोहल्ले में बारिश का पानी आजकल,
सुना है कागज़ की नाव बनानेवाले बड़े हो गए है...
कभी तिनके, कभी पत्ते, कभी ख़ुश्बू उड़ा लाई,
मेरे घर तो आंधी भी कभी तनहा नहीं आई
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे...
इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूं है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है
हर गुनाह कबूल है हमे:
हर गुनाह कबूल है हमे,
बस सजा देने वाला 'बेगुनाह' हो..!
बेवक़्त, बेसबब, बेहिसाब मुस्करा लेते हैं ,
आधे दुश्मनों को तो, हम यूँ ही हरा लेते हैं ।
ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी!
फर्क तो रंगों का है!
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर;
और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर!!..
जनाजा उठा है आज कसमों का मेरी
एक कन्धा तो तेरे वादों का भी बनता है....!!!
Thursday, 23 June 2016
हमेशा भगवान के सम्पर्क मे रहे।।।
एक बार यशोदा माँ यमुना मे दीप दान कर रही थी, वो पत्ते मे दीप रखकर प्रवाह कर रही थी वो देख रही थी कोई दीप आगे नही जा रहा...
ध्यान से देखा तो कान्हा जी एक लकडी लेकर जल से सारे दीप बाहर निकाल रहे थे, तो माँ कहती है लला तू ये का कर रहो है... कान्हा कहते है.. माँ ये सब डूब रहे थे तो मै इन्हे बचा रहा हू।..
माँ ये सब सुनकर हँसने लगी और बोली लला
तू केको केको बचायेगा..
ये सुनकर कान्हा जी ने बहुत सुन्दर जवाब दिया...
माँ मै सब को ठेको थोडी न ले रखो है।
जो मेरी पहुँच मे आएंगे उनको बचाऊंगा...
इसलिये हमेशा भगवान के सम्पर्क मे रहे।।।।।
सकारात्मक बनिए !! हार मत मानिए !!
एक राजा के पास कई हाथी थे, लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था।
समय गुजरता गया ...
और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा।
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था।
इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।
एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया।
उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।
उसकी चिंघाड़ने की आवाज़ से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है।
हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।
राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इकट्ठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे।
जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया।
मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ।
सुनने वालों को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।
आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा।
पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया।
अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।
हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह – उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।
कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है।
जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।
आपका जीवन आनंद, ऊर्जा तथा उत्साह से भरा हो, आपके प्रयत्नों में आपको अपार यश प्राप्त हो तथा आपके स्वप्नों की पूर्ति हो ।
सकारात्मक बनिए !! हार मत मानिए !!
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
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