Friday, 24 June 2016

हर गुनाह कबूल है हमे:

हर गुनाह कबूल है हमे,
बस सजा देने वाला 'बेगुनाह' हो..!

बेवक़्त, बेसबब, बेहिसाब मुस्करा लेते हैं ,
आधे दुश्मनों को तो, हम यूँ ही हरा लेते हैं ।

ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी!
फर्क तो रंगों का है!
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर;
और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर!!..

जनाजा उठा है आज कसमों का मेरी
एक कन्धा तो तेरे वादों का भी बनता है....!!!

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