Friday, 24 June 2016

अल्फ़ाज़ भी असर करते हैं:

ग़ज़ल में बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ ही नहीं सब कुछ
जिगर का ख़ून भी कुछ चाहिए असर के लिए

अल्फाज भी वही असर करते है
जहाँ पर मोहब्बत हो..….

उदास रहता है मोहल्ले में बारिश का पानी आजकल,
सुना है कागज़ की नाव बनानेवाले बड़े हो गए है...

कभी तिनके, कभी पत्ते, कभी ख़ुश्बू उड़ा लाई,
मेरे घर तो आंधी भी कभी तनहा नहीं आई

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे...

इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई 
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया 

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूं है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है

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