Thursday, 16 June 2016

न गुल खिले:

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं

अनमोल जो इंसाँ था वो कौड़ीं में बिका है
दुनिया के कई ऐसे भी बाज़ार मिले हैं

मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन

नफरतों के बाजार में जीने का अलग
ही मजा है,
लोग "रूलाना" नहीं छोडते,
और हम "हसना" नहीं छोडते

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