Wednesday, 2 March 2016

तू मेरी खामोशी पढ़ ले तो सुकून आता है:

किसी बुरे के बुरा कहने से आप बुरे नहीं बन जाते..
जहाँ तक हो सके अपनी राह चलें और फिर कहने वालों को जो चाहें कहने दें..

हम तुम, एक ही तार पे बैठे दो पंछी थे ।
एक उड़ जाये अचानक,
तो दुसरे को सम्भलने में वक़्त लगता है ।।

दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
दो-चार दिन रहा था किसी की निगाह में

मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी
तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं

वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मेरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है

शहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने हंसाने से रही।

हाल तो पूछ लूँ तेरा पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी;
जब जब सुनी है कम्बख़्त मोहब्बत ही हुई है!

कोई प्यार से जरा सी फुंक मार दे तो बुझ जाऊं....
नफरत से तो तुफान भी हार गए मुझे बुझाने में....

ऐसा नहीं कि शख्स अच्छा नहीं था वो
जैसा मेरे ख्याल में था बस वैसा नहीं था वो..

सुना है काफी पढ़ लिख गए हो तुम !
कभी वो भी तो पढ़ो जो हम कह नहीं पाते !!....

यूँ तो अल्फ़ाज़ बहुत हैं शायरी में बयां करने के लिए..
पर जो तुम मेरी खामोशी पढ़ लेते तो सुकून आ जाता..!

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