बन्सी:
कोई ना कोई शौक़ ज़रूरी है,
सिर्फ़ अज़मत भरी ज़िंदगी का वज़न
कोई कैसे उठा पाएगा..
बन्सी:
सियासत मुफलिसों पर इस तरह अहसान करती हैं.
ये आँखें छीन लेती है चश्मे दान करती है !!
बन्सी:
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मेरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है
बन्सी:
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
बन्सी:
तौहीन ना करो नीम को कड़वा कहकर.....
जिंदगी के तजुर्बे नीम से भी कड़वे होते है!
बन्सी:
गैरों के दिल पर राज़ करने का
कहाँ शौक था मेरा
मुझे तो अपनो ने ही भीखारी
बना कर छोड़ दिया
बन्सी:
मेरी खामोशियों का राज़ मुझे खुद नहीं मालूम...
जाने फिर क्यूँ लोग मुझे मग़रूर समझते हैं...
बन्सी:
मैंने रोका नहीं वो चला भी गया,
बेबसी दूर तक देखती रह गई,
मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी,
आते-आते इधर चाँदनी रह गई !
बन्सी:
जिस नजाकत से ये लहरे मेरे पैरो को छुती है,
यकीन नही होता की ये तमाम कश्तियाँ डूबोकर आ रही है...
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