Friday, 26 February 2016

लहरें तमाम कश्तियाँ डुबो क्र आई है

बन्सी:
कोई ना कोई शौक़ ज़रूरी है,

सिर्फ़ अज़मत भरी ज़िंदगी का वज़न
कोई कैसे उठा  पाएगा..

बन्सी:
सियासत मुफलिसों पर इस तरह अहसान करती हैं.

ये आँखें छीन लेती है चश्मे दान करती है !!

बन्सी:
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है

मेरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है

बन्सी:
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन

आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन

बन्सी:
तौहीन ना करो नीम को कड़वा कहकर.....

जिंदगी के तजुर्बे नीम से भी कड़वे होते है!

बन्सी:
गैरों के दिल पर राज़ करने का
कहाँ शौक था मेरा

मुझे तो अपनो ने ही भीखारी
बना कर छोड़ दिया

बन्सी:
मेरी खामोशियों का राज़ मुझे खुद नहीं मालूम...

जाने फिर क्यूँ लोग मुझे मग़रूर समझते हैं...

बन्सी:
मैंने रोका नहीं वो चला भी गया,
बेबसी दूर तक देखती रह गई,

मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी,
आते-आते इधर चाँदनी रह गई !

बन्सी:
जिस नजाकत से ये लहरे मेरे पैरो को छुती है,

यकीन नही होता की ये तमाम कश्तियाँ डूबोकर आ रही है...

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