Thursday, 25 February 2016

ज़रा पंख आये तो आशियाना छोड़ दिया:

बन्सी:
आपकी कल्पनाशक्ति आपके जीवन के आनेवाले आकर्षणो का पूर्वालोकन है।
Your imagination is the preview to life's  coming attractions.

बन्सी:
A smart man only believes half of what he hears, a wise man know which half.

बन्सी:
#Gita अ.6*18

वश में किया हुआ मन जब परमात्मा में ही पूर्ण स्थित हो जाता है, तब भोगों से परे हुआ पुरुष योग युक्त कहा जाता है।

बन्सी:
#Gita अ.6*18
यदा विनियतं चित्तमआत्मन्येवावतिष्ठते।
नि:स्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।

बन्सी:
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है,

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा...

बन्सी:
एक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उनको मुबारक
एक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे

बन्सी:
सवाल जहर का नहीं था, वो तो मैं पी गया
तकलीफ लोगों को तब हुई, जब मैं जी गया

बन्सी:
गरीबी थी जो सबको एक आंचल में
सुला देती थी,
अब अमीरी आ गई सबको अलग मक़ान चाहिए..!

बन्सी:
मैं डर  रहा  हूँ  हवा से  ये पेड़  गिर न पड़े
कि इस पे चिडियों का इक ख़ानदान रहता है

बन्सी:
ख़ामोशी पसन्द थी उन्हें
मैंने भी लफ्जों के गले काट दिये

बन्सी: बहुत नज़दीक आते जा रहे हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या

बन्सी: समुंदरों के सफ़र जिन के नाम लिक्खे थे
उतर गए वो किनारों पे कश्तियाँ ले कर

बन्सी:
फराज ए दार पे रखते चलो सरों के चिराग
जहाँ तलक ये सितम की स्याह रात चले।

बन्सी:
ख्वाब ख्याल, मोहब्बत, हक़ीक़त, गम और तन्हाई,

ज़रा सी उम्र मेरी किस-किस के साथ गुज़र गयी!

बन्सी:
ना जाने वो बच्चा किससे खेलता होगा,

वो जो मेले में दिन भर खिलौने बेचता है...

बन्सी:
''ख़ामोशी है ज़मीं से आस्माँ तक किसी की दास्ताँ है और मैं हूँ''

बन्सी:
देना है तो दे खुदा, ऐसा हमें मिज़ाज ।

खुद्दारी सर पर रहे, ठोकर में हो ताज ।।

बन्सी:
हम इतने खूबसुरत तो नही है मगर हाँ...
जिसे आँख भर के देख लें....उसे उलझन में  डाल देते हैं..!!

बन्सी:
ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं

बन्सी:
इतना, आसान हूँ कि हर किसी को समझ आ जाता हूँ,

शायद तुमने ही पन्ने छोड़ छोड़ कर पढ़ा है मुझे..

बन्सी:
आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है

बन्सी:
परिन्दों की फ़ितरत से आए थे वो मेरे दिल में,

ज़रा पंख निकल आए तो आशियाना छोड दिये..

बन्सी:
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद

बन्सी:
किताब खोलूँ तो हर्फ़ों में खलबली मच जाए
क़लम उठाऊँ तो काग़ज़ को फैलता देखूँ

बन्सी:
अब तो बदनामी से शोहरत का वो रिश्ता है कि लोग
नंगे हो जाते हैं अख़बार में रहने के लिए

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