वत्स, जब बात समझ के बाहर हो तब प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए ।
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बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम,
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम.
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ख़ुद भी वो मुझ से बिछड़ कर अधूरा सा हो गया,
मुझ को भी इतने लोगों में तनहा बना दिया...
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वो एक दर्द जो मेरा भी है तुम्हारा भी
वही सज़ा है मगर है वही सहारा भी
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काश कुछ ज़हमत तुम भी उठा लेते
टूटने से ना सही बिखरने से बचा लेते...
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