बेशक-ख़ामोशियाँ...बातें हज़ार करती है..
मगर, लफ़्ज़ों में हुये इज़हार की बात ही कुछ और है
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पानी से भरी आँखें ले कर वो मुझे घूरता ही रहा,
वो आइने में खड़ा शख़्स परेशान बहुत था...
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एहसासों की नमी बेहद जरुरी है हर रिश्ते में,
रेत भी सूखी हो तो हाथों से फिसल जाती है।
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हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी
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बारूद के इक ढेर पे बैठी हुई दुनिया,
शोलों से हिफ़ाज़त का हुनर पूछ रही है.
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कभी चाल,कभी मकसद,कभी मंसूबे यार होते है,
आज के दौर में वाह वाह के मतलब हज़ार होते है
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हँसकर कबूल क्या
कर लीं सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया
हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का
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वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
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शब्द मुफ्त में मिलते हैं
लेकिन उनके चयन पर"निर्भर"करता है,
कि उनकी कीमत "मिलेगी" या"चुकानी"पड़ेगी...!!!
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