ग़मो की धूप में भी मुस्कुरा कर चलना पड़ता है
ये दुनिया है यहाँ चेहरा सजा कर चलना पड़ता है
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मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
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मुद्दत हुई इक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन
अब तक है तिरे दिल के धड़कने की सदा याद
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सारा शहर उस के जनाजे में था शरीक...
तन्हाइयों के खौफ से जो शख्स मर गया...
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चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती
उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है
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"मुझे यह पसंद है कि व्यक्ति िजस जगह रहे वहां रहने का उसे अभिमान हो। मुझे यह पसंद है कि व्यक्ति ऐसे रहे कि उसके रहने की जगह को उसका अभिमान हो। "
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