*Andrew Carnegie* came to America from Scotland as a young boy. He started out by doing odd jobs and ended up as one of the largest steel manufacturers in United States. At one time, he had 43 millionaires working for him. A million dollars is a lot of money today, but in the 1920s it was worth much more.
Someone once asked Mr. Carnegie how he dealt with people, Andrew Carnegie replied, " Dealing with people is like digging for gold: when you go digging for an ounce of gold you have to move tons of dirt. But when you go digging, you don't go looking for dirt, you go looking for gold."
The message here is very important:
Though sometimes it may not be apparent there is something positive in every person and every situation. We have to dig deep to look for the positive.
Thursday, 29 June 2017
Millions dollar:
Tuesday, 27 June 2017
निगाहें जमाल:
दिल की बिसात क्या थी, निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था, टूट गया देख-भाल में
🌷
*छल में बेशक बल है, लेकिन....*
*माफ़ी मैं आज भी हल है....*
🌷🌹🌷
अपने मन में डूब कर पा जा सु्राग़-ए-ज़िन्दगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन
🌷🌹🌷
उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
ज़िंदगी को ढूँडने में ज़िंदगी बर्बाद की
🌷🌹🌷
मेरी आँखों से जो गिरता है वो दरिया देखो,
मैं हर हाल में ख़ुश हूँ, मेरा नज़रिया देखो...!!
🌹🌷🌹
"अंधकार से भयभीत बालक को क्षमा करना आसान है; जीवन की वास्तविक त्रासदी तो तब है जब आदमी रोशनी से भयभीत हों।
🌷🌹🌷
समस्या होती ही नहीं बिचारों में बड़ा बना देते हैं:
एक राजा ने बहुत ही सुंदर ''महल'' बनावाया और महल के मुख्य द्वार पर एक ''गणित का सूत्र'' लिखवाया और एक घोषणा की कि इस सूत्र से यह 'द्वार खुल जाएगा और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' कर के ''द्वार'' खोलेगा में उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर दूंगा।
राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और सूत्र देखकर लोट गए, किसी को कुछ समझ नहीं आया। आख़री दिन आ चुका था उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे। उसमे 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रो की पुस्तकों सहित आये। लेकिन एक व्यक्ति जो ''साधक'' की तरह नजर आ रहा था सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था। उसने कहा मै यहां बैठा हूँ पहले इन्हें मौक़ा दिया जाए। दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए लेकिन द्वार नहीं खोल पाये और अपनी हार मान ली। अंत में उस साधक को बुलाया गया और कहा कि आपका सूत्र हल करिये समय शुरू हो चुका है। साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ 'द्वार' की ओर गया। साधक ने धीरे से द्वार को धकेला और यह क्या? द्वार खुल गया, राजा ने साधक से पूछा - आप ने ऐसा क्या किया? साधक ने बताया जब में 'ध्यान' में बैठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई, कि पहले ये जाँच तो कर ले कि सूत्र है भी या नहीं। इसके बाद इसे हल ''करने की सोचना'' और मैंने वही किया! कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या'' होती ही नहीं और हम ''विचारो'' में उसे बड़ा बना लेते हैं।
*जीएसटी लगने तो दीजिये अभी अपना ब्लड प्रेशर मत बढाइये*
व्यपारी,,:
एक व्यापारी अकबर के समय मे बिजनस करता था महाराना परताप से लडाई की वजह से अकबर कंगाल हो गया और व्यापारी से कुछ सहायता मांगी, व्यापारी ने अपना सब धन अकबर को दे दिया तब अकबर ने उससे पुछा कि तुमने इतना धन कैसे कमाया सच सच बताओ नहि तो फांसी दे दुंगा। मारवाडी बोला जहांपनाह मेनै यह सारा धन कर चौरी और मिलावट से कमाया है। यह सुनकर अकबर ने बीरबल से सलाह करके व्यापारी को घौडो के अस्तबल मे लीद साफ करने की सजा सुनाई। व्यापारी वहां काम करने लगा।
दो साल बाद फिर अकबर लडाई मे कं
गाल हो गया तो बीरबल से पुछा अब धन की व्यवस्था कौन करेगा। बीरबल ने कहा बादशाह उस व्यापारी से बात करने से समस्या का समाधान हो सकता है। तब अकबर ने फिर व्यापारी को बुलाकर अपनी परेशानी बताई तो व्यापारी ने फिर बहुत सारा धन अकबर को दे दिया। अकबर ने पुछा तुम तो अस्तबल मे काम करते हो फिर तुम्हारे पास इतना धन कहां से आया सच सच बताओ नहि तो सजा मिलेगी। व्यापारी ने कहा यह धन मैने आप के आदमी जो घौडों की देखभाल करते है उन से यह कहकर रिश्वत लिया है कि घौडे आजकल लीद कम कर रहै है इसकी शिकायत बादशाह को करुगां क्योंकि तुम घौडो को पुरी खुराक नहीं देते हौ ओर पैसा खजाने से पुरा उठाते हो। अकबर फिर नाराज हुआ और व्यापारी से कहा कि तुम कल से अस्तबल में काम नही करोगे। कल से तुम समुन्दर् के किनारे उसकी लहरे गीनो और मुझे बताऔ।
दो साल बाद
अकबर फिर लडाई में कंगाल
चारो तरफ धन का अभाव किसी के पास धन नहीं। बीरबल और अकबर का माथा काम करना बंद। अचानक बीरबल को व्यापारी की याद आई। बादशाह को कहा आखरी उमी्द व्यापारी दिखता है आप की ईजाजत हो तो बात करू। बादशाह का गरूर काफुर बोला किस मुंह से बात करें दो बार सजा दे चुकें हैं। दोस्तो व्यापारी नै फिर बादशाह को ईतना धन दिया कि खजाना पूरा भर दिया। बादशाह ने डरते हुऐ धन कमाने का तरिका पूछा तो व्यापारी ने बादशाह को धन्यवाद दिया और कहा इस बार धन विदेश से आया है क्योकि मैने उन सब को जो विदेश से आतें हैं आप का फरमान दिखाया कि जो कोइ मेरे लहरे गिनने के काम में अपने नाव से बाधा करेगा बादशाह उसे सजा देंगें । सब डर से धन देकर गये और जमा हो गया।
Wednesday, 21 June 2017
Discipline:
Success is possible only when you can *master your own emotions, appetites and inclinations*.
People who lack the ability to master their appetite becomes week and dissolute as well as unreliable in other things as well.
Self-discipline can also be defined as *Self-control*. Your ability to control yourself and your actions, control what you say and do, and ensure that your behaviors are consistent with your long term goals and objectives is the mark of superior person.
Discipline has been defined as *Self-denial*. This requires that you deny yourself the easy pleasures, the temptations that lead so many people astray, and instead discipline yourself to do only those things that you know are right for the long term and appropriate for the moment.
Self-discipline requires *delayed gratification*, the ability to put off satisfaction in the short term in order to enjoy greater rewards in the long term.
फुटपाथ पर सोनेवाले:
फुटपाथ पर सोने वाले हैरान हैं आती-जाती गाड़ियों से
कमबख़्त जिनके घर हैं वो घर क्यों नहीं जाते...
🌹🌷🌹
राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया
दिल बहुत कुछ जला के देख लिया
वो मेरे हो के भी मेरे न हुए
उन को अपना बना के देख लिया
🌹🌺🌹
नर्म अल्फ़ाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं
🌺🌷🌺
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
🌹🌺🌹
आकाश में सुराख नहीं हो सकता:
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो
~दुष्यंत कुमार
Tuesday, 20 June 2017
God lives in our vicinity,:
A young man in his thirties used to stand on the footpath opposite the famous Tata Cancer Hospital at Mumbai and stare at the crowd in front- fear plainly written upon the faces of the patients standing at death's door; their relatives with equally grim faces running around.. These sights disturbed him greatly..
Most of the patients were poor people from distant towns. They had no idea whom to meet, or what to do. They had no money for medicines, not even food. The young man, heavily depressed, would return home. 'Something should be done for these people', he would. think. He was haunted by the thought day and night.
At last he found a way-
He rented out his own hotel that was doing good business and raised some money. From these funds he started a charitable activity right opposite Tata Cancer Hospital, on the pavement next to Kondaji Building. He himself had no idea that the activity would continue to flourish even after the passage of 27 years. The activity consisted of providing free meals for cancer patients and their relatives. Many people in the vicinity approved of this activity. Beginning with fifty, the number of beneficiaries soon rose to hundred, two hundred, three hundred. As the numbers of patients increased, so did the number of helping hands.
As years rolled by, the activity continued; undeterred by the change of seasons, come winter, summer or even the dreaded monsoon of Mumbai. The number of beneficiaries soon reached 700.
Mr Harakhchand Sawla, for that was the name of the pioneer, did not stop here. He started supplying free medicines for the needy. In fact, he started a medicine bank, enlisting voluntary services of three doctors and three pharmacists. A toy banks was opened for kids suffering from cancer. The 'Jeevan Jyot' trust founded by Mr Sawla now runs more than 60 humanitarian projects. Sawla, now 57 years old, works with the same vigour. A thousand salutes to his boundless energy and his monumental contribution!
There are people in this country who look upon Sachin Tendulkar as 'God'- for playing 200 test matches in 20 years, few hundred one day matches, and scoring100 centuries and 30,000 runs. But hardly anyone knows Harakhchand Sawla, leave alone call him 'God' for feeding free lunches to 10 to 12 lac cancer patients and their relatives. We owe this discrepancy to our mass media!
(A relentless hunt on Google failed to procure a photograph of Mr.
Sawla.)
Crores of devotees hunting for 'God' in Vithoba temple at Pandharpur, Sai temple at Shirdi, Balaji temple at Tirupati will never find 'God'. God resides in our vicinity. But we, like mad men run after 'god-men', styled variously as Bapu, Maharaj or Baba. All Babas, Maharajs and Bapus become multi-millionnaires, but our difficulties, agonies and disasters persist unabated till death. For last 27 years, millions of cancer patients and their relatives have found 'God', in the form of Harakhchand Sawla.
As you forward interesting jokes and poems instantly, do forward this message. Mr Sawla deserves his fair share of fame.
Friday, 16 June 2017
संगत का असर:
कहते हैं कि हो जाता है संगत का असर...
फिर काँटों क्यूँ नहीं आया महकने का सलीका...
🌷🌹🌷👌🏻👌🏻🌷🌹🌷
आज टूट गया तो बच बच कर निकलते हो,
कल आईना था तो रुक-रुक कर देखते थे..
🌹🌷🌷🌺🌷🌷🌹
"I am surprised by humanity. Because a man sacrifices his health in order to make money. Then he sacrifices money to recuperate his health. And then he is so anxious about the future that he does not enjoy the present; the result being that he does not live in the present or the future; he lives as if he is never going to die, and then dies having never really lived."
🌹🌷Dalai Lama🌷🌹
"जब चलना नहीं आता तो गिरने नहीं देते थे लोग....
जब से संभाला खुद को
कदम कदम पर गिराने की सोचते है लोग..."
🌷🌹🌺🌹🌷
खामोशियाँ बाते हज़ार करती है:
बेशक-ख़ामोशियाँ...बातें हज़ार करती है..
मगर, लफ़्ज़ों में हुये इज़हार की बात ही कुछ और है
🌷🌹🌷
पानी से भरी आँखें ले कर वो मुझे घूरता ही रहा,
वो आइने में खड़ा शख़्स परेशान बहुत था...
🌷🌹🌷
एहसासों की नमी बेहद जरुरी है हर रिश्ते में,
रेत भी सूखी हो तो हाथों से फिसल जाती है।
🌹🌺🌹
हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी
🌷🌹🌺🌷🌹
बारूद के इक ढेर पे बैठी हुई दुनिया,
शोलों से हिफ़ाज़त का हुनर पूछ रही है.
🌺🌷🌺
कभी चाल,कभी मकसद,कभी मंसूबे यार होते है,
आज के दौर में वाह वाह के मतलब हज़ार होते है
🌺🌹🌺
हँसकर कबूल क्या
कर लीं सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया
हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का
🌹🌷🌹
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
🌷🌺🌷
शब्द मुफ्त में मिलते हैं
लेकिन उनके चयन पर"निर्भर"करता है,
कि उनकी कीमत "मिलेगी" या"चुकानी"पड़ेगी...!!!
🌹🌺🌹
तखरीब नहीं आती:
मुझको तख़रीब भी नहीं आती..
तोड़ता कुछ हूँ, टूटता कुछ है..
🌷🌺🌷
गुनहगारों की आँखों में झूठे ग़ुरूर होते हैं...
यहाँ शर्मिन्दा तो सिर्फ़ बेक़सूर होते है...!
🌹🌺🌹
Stop worrying about pleasing others so much, do more of what makes you happy.
🌷🌺🌷
हम चुप रहे तो और भी इल्ज़ाम आएगा
अब कुछ न कुछ जवाब ज़रूरी सा हो गया
🌺🌷🌺
ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते
🌷🌹🌷
"शुरूआत करने का तरीका है कि मुंह बंद करें और काम में लगें। "
🌺🌹🌺
Thursday, 15 June 2017
गृह क्लेश:
🌃🏕🌃🏕🌃🏕
गृह क्लेश,:
*संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है।*
*मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है । मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है ?*
*कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,‘ लालटेन जलाकर लाओ’ । कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई ।*
*थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘ कुछ मीठा दे जाना। ’इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’*
*कबीर ने पूछा, आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है ? वह व्यक्ति बोला, मेरी समझ में कुछ नहीं आया।*
*कबीर ने कहा, जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी।*
*मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या ? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।’ उस आदमी को हैरानी हुई । वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।*
*कबीर ने फिर कहा, गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजर अंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।*
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*_'गुफ्तगू' करते रहिये,_*
*_थोड़ी थोड़ी अपने चाहने वालों से..._*
*'जाले' लग जाते हैं,*
*अक्सर बंद मकानों में.....*
Sunday, 11 June 2017
मूर्ख का धनवान होना:
*** एक चूहे ने हीरा(diamond) निगल लिया तो हीरे के मालिक ने उस चूहे को मारने के लिये एक शिकारी को ठेका दिया।
*** जब शिकारी चूहे को मारने पहुँचा तो वहाँ हजारों चूहे झूँड बनाकर एक दूजे पर चढे हुए थे और एक चूहा उन सबसे अलग बेठा था। ***शिकारी ने सीधा उस चूहे को पकङा जिसने डायमन्ड निगला था। ***अचम्भित डायमन्ड के मालिक ने शिकारी से पूछा,हजारों चूहों में से इसी चूहे ने डायमन्ड निगला यह तुम्हे केसे पता लगा? *** शिकारी ने जवाब दिया बहुत ही आसान था,जब मूर्ख धनवान बन जाता है तब दूसरों से मेल मिलाप छोङ देता है।
Saturday, 10 June 2017
कलाकार:
*"कारीगर हूँ साहब 'अल्फ़ाज़ो' की मिट्टी से 'महफ़िलों' को सजाता हूँ.*
*कुछ को 'बेकार' ......कुछ को 'कलाकार' नज़र आता हूँ"*
🌹🌷🌹
*'खुदगर्ज की बस्ती में, एहसान भी एक गुनाह हैं,*
*जिसे तैरना सिखाओ, वही डुबाने को तैयार रहता हैं.*
🌷🌹🌷
Friday, 9 June 2017
वही सजा है वही सहारा है:
वत्स, जब बात समझ के बाहर हो तब प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए ।
🌷🌹🌷
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम,
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम.
🌹🌷🌹
ख़ुद भी वो मुझ से बिछड़ कर अधूरा सा हो गया,
मुझ को भी इतने लोगों में तनहा बना दिया...
🌷🌹🌷
वो एक दर्द जो मेरा भी है तुम्हारा भी
वही सज़ा है मगर है वही सहारा भी
🌹🌷🌹
काश कुछ ज़हमत तुम भी उठा लेते
टूटने से ना सही बिखरने से बचा लेते...
🌹🌷🌹
मुस्कुरा कर चलना:
ग़मो की धूप में भी मुस्कुरा कर चलना पड़ता है
ये दुनिया है यहाँ चेहरा सजा कर चलना पड़ता है
🌷🌹🌷
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
🌷🌹🌷
मुद्दत हुई इक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन
अब तक है तिरे दिल के धड़कने की सदा याद
🌷🌹🌷
सारा शहर उस के जनाजे में था शरीक...
तन्हाइयों के खौफ से जो शख्स मर गया...
🌹🌷🌹
चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती
उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है
🌷🌹🌷
"मुझे यह पसंद है कि व्यक्ति िजस जगह रहे वहां रहने का उसे अभिमान हो। मुझे यह पसंद है कि व्यक्ति ऐसे रहे कि उसके रहने की जगह को उसका अभिमान हो। "
🌷🌹🌷
Wednesday, 7 June 2017
एक नई कहानी:
बहुत समय पहले की बात है ,*_
_🦅एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये ।_
_🦅वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।_
_🦅राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।_
_🦅जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया ,और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।_
_🦅राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।_
_🦅राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे
आदमी से कहा,_
_🦅” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।_
_🦅“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे ,_
_🦅पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था ,_
_🦅वहीँ दूसरा , *कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया*_
_🦅जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा._
_🦅“क्या बात है *जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज* उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,_
_🦅राजा ने सवाल किया।_
_*🦅” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”*_
_🦅राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।_
_🦅अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया,कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।_
_🦅फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे ,_
_🦅पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।_
_🦅फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं।_
_🦅उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।_
_🦅वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा ,_
_🦅” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम
इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े
विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे
कर दिखाया।_
_🦅“ “मालिक !_ _मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।_
_🦅“दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं।_
_🦅लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ_
_बड़ा करने की काबिलियत को, भूल जाते हैं।_
_🦅यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये_
_🦅कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?_
🦅 _"Luck is what happens when"_
_"preparation meets opportunity"_
👌🙏👌. *कुछ बडा करना चाहते हो तो सबसे अलग कुछ करना होगा*.... जो सभी करते है वो ही करते रहोगे तो *सिर्फ घर खर्च ही चलेगा और अगर आपके ख्वाब* बडे है तो कुछ अलग कर दिखाना होगा 👍🏻👍🏻
Sunday, 4 June 2017
अपनी तस्वीर को सौ बार देखा है:
उसने तारीफ ही कुछ इस अंदाज से की, अपनी ही तस्वीर को सौ बार देखा मैंने.. 🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷
खुश रहने मय्यसर:
जिस को ख़ुश रहने के सामान मयस्सर सब हों
उस को ख़ुश रहना भी आए ये ज़रूरी तो नहीं ...
🌷🌹
भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है
🌷🌹🌷
फक़त हौसलों से नही जी जाती दुनिया,
किसी का सहारा भी ज़रूरी होता है |
🌹🌷🌹
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि काफ़िला क्यूं लुटा
मुझे रहजनों से गरज नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है...
🌷🌹🌷
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
एक छलकते साग़र में मय भी है मय-ख़ाना भी
🥃🍸🥃
बे-ख़ुदी ने मुझे दीदार दिखाया तेरा तुझ को
पाया तो मगर आप को खो कर पाया🌹🌷🌹
फरेब खाते रहे:
वत्स, जब बात समझ के बाहर हो तब प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए ।
🌷🌹🌷
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम,
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम.
🌹🌷🌹
ख़ुद भी वो मुझ से बिछड़ कर अधूरा सा हो गया,
मुझ को भी इतने लोगों में तनहा बना दिया...
🌷🌹🌷
Friday, 2 June 2017
आसमां कैसे लगेगा:
"A lie can travel around the world while the truth is putting on his shoes."
🌹🌷
"A wise man should have money in his head, but not in his heart."
🌹🌷
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
हमारे बाद तुम को ये जहाँ कैसा लगेगा
🌹🌷
हमारे दिल की तरह शहर के ये रस्ते भी
हज़ार भेद छुपाए हुए से लगते हैं
🌹🌷
*एक दिन मुझसे लिपटकर, समय भी रोयेगा*
*कहेगा! तू इंसान तो सही था, मैं ही खराब "चल रहा था"।*
कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें
ख़ाक से उट्ठे हैं सो ख़ाक ही होना है हमें
🌹🌷
एक बिगड़ी हुई क़िस्मत पे न हँसना ऐ दोस्त
जाने किस वक़्त ये इंसान सँवर जाता है
बदलूँ तो मेरा नाम वक़्त रखना,थम जाऊं तो हालात,
छलक जाऊं तो मुझे जज़्बात कहना,महसूस हो जाऊं तो मोहब्बत.
🌹🌷
इतनी शीद्द्त से तो वो खुदा भी नही ढूंढता,
जितनी शिद्दत से इंसान दूसरे में एब ढूंढता है
🌹🌷
एक पल भी ना निभा सकेंगे मेरा किरदार,
वो लोग जो मुझे मशवरे देते हैं हज़ार...
🌹🌷
खुद को पढ़ता हूँ
फिर छोड़ देता हूँ,
रोज़ ज़िन्दगी का
एक पन्ना मोड़ देता हूँ...
🌹🌷
अफ़वाह थी कि मेरी तबियत ख़राब है
लोगों ने पूछ पूछ कर बीमार कर दिया
🌹🌷
Teri judaee:
हर क़दम पर मैं तेरा बोझ उठाऊँ कैसे
ज़िंदगी तेरी ज़रूरत मुझे ले डूबेगी
🌹🌷
"एक एक कर इतनी कमियां निकाली लोगों ने मुझमें,
की अब बस "खुबियां" ही रह गयी हैं मुझमें...
🌹🌷
बिगड़ी हुई ज़िंदगी को ज़रा सँवार लो
अभी भी वक्त है यारो
अपनों को ज़रा आदर ज़रा प्यार दो
फिर आने वाला वक्त तुम्हारा है
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है
🌷🌹🌷
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
🌹🌷🌹
अजिययात से ताउम्र का दोस्ताना है
खौफ तो बस खुशी के लम्हो से है..
🌷🌹🌷
जिंदगी तेरी ज़रूरत है:
हर क़दम पर मैं तेरा बोझ उठाऊँ कैसे ज़िंदगी तेरी ज़रूरत मुझे ले डूबेगी 🌹🌷🌹
तू अपने चेहरे की बढ़ती सलवटों की परवाह ना कर, हम अपनी शायरी में तुझको हमेशा जवान लिखेंगे..!!
बस एक ख़ौफ़ था ज़िंदा तिरी जुदाई का
मिरा वो आख़िरी दुश्मन भी आज मारा गया
Thursday, 1 June 2017
अनजाने कर्म का फल:
What is Karam? How it works?
☺: अनजाने कर्म का फल
VERY INTRESTING
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
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