मैं एक घर में मेहमान था,एक ग्रामीण घर में। अब तो बिजली आ गयी उस गांव में। बिजली जली, अब घर की बिजली है, खुद ही ग्रामीण ने जलायी और खुद ही सिर झुकाकर नमस्कार किया। मेरे साथ एक मित्र बैठे थे पढ़े-लिखे हैं, डाक्टर हैं। उन्होंने कहा : यह क्या पागलपन है? अब तो बिजली हमारे हाथ में है। अब तो यह कोई इंद्र का धनुष नहीं है। अब तो यह कोई इंद्र के द्वारा लायी गयी चीज नहीं है। यह तो हमारे हाथ में है, हमारे इंजीनियर ला रहे हैं। और तू खुद अभी बटन दबाकर इसको जलाया है।
वह ग्रामीण तो चुप रह गया। उसके पास उत्तर नहीं था। लेकिन मैंने उन डाक्टर को कहा कि उसके पास भला उत्तर न हो, लेकिन उसकी बात में राज है और तुम्हारी बात में राज नहीं है। और तुम्हारी बात बड़ी तर्कपूर्ण मालूम पड़ती है। यह सवाल ही नहीं है कि बिजली कहां से आयी। कुल सवाल इतना है कि झुकने का कोई बहाना मिले तो चूकना मत। जिंदगी जितनी झुकने में लग जाए उतना शुभ है, क्योंकि उतनी ही प्रार्थना पैदा होती है। और जितने तुम झुकते हो उतना ही परमात्मा तुम में झांकने लगता है,झुके हुओं में ही झांकता है !
Wednesday, 30 December 2015
ओशो " प्रार्थना":
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