गुजरात में एक प्रसिद्ध वकील रहा करते थे । एक बार
वे एक मुकदमा लड़ रहे थे कि गाँव में उनकी
पत्नी बीमार हो गई ।
.
वे उसकी सेवा करने गाँव पहुचे कि उन्ही
दिनों उनके मुक़दमे की तारीख पड़ गई ।
.
एक तरफ उनकी पत्नी का स्वास्थ्य था, तो
दूसरी और उनका मुकदमा ।
.
उन्हें असमंजस में देख पत्नी ने कहा -
"मेरी चिंता न करे, आप शहर जाये । आपके न रहने
पर कहीँ किसी बेकसूर को सजा न हो जाये
।"
.
वकील साहब दुःखी मन से शहर पहुचे
और जब वे अपने मुवक्किल के पक्ष में जिरह करने खड़े
हुए
ही थे कि किसी ने उनको एक
टेलीग्राम लाकर दिया ।
.
उन्होंने टेलीग्राम पढ़कर अपनी जेब में
रख लिया और बहस जारी रखी । अपने
सबूतो के आधार पर उन्होंने अपने मुवक्किल को
निर्दोष सिद्ध कर
दिया , जो कि वह था भी ।
.
सभी लोग वकील साहब को बधाई देने
पहुँचे और उनसे पूछने लगे कि टेलीग्राम में क्या लिखा
था ?
.
वकील साहब ने जब वह टेलीग्राम
सबको दिखाया तो वे अवाक् रह गए । उसमे उनकी
पत्नी की मृत्यु का समाचार था । लोगों ने
कहा - "आप अपनी बीमार
पत्नी को छोड़कर कैसे आ गए ?"
.
वकील साहब बोले -"आया तो उसी के
आदेश से ही था ; क्योकि वह जानती
थी कि बेकसूर को बचाने का कर्तव्य सबसे बड़ा धर्म
होता है "।
.
वे वकील साहब और कोई नहीं - सरदार
वल्लभ भाई पटेल थे , जो अपनी इसी
कर्तव्यपरायणता के कारण लौह पुरुष कहलाये।
Sunday, 20 December 2015
कर्तव्यपरायणता:
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