Tuesday, 29 December 2015

अपने झगड़े में ज़माने की ज़रूरत क्या है:

Bansi:
जहां हो जैसे हो, वहीं वैसे ही रहना तुम,
तुम्हें पाना जरुरी नहीं, तुम्हारा होना ही काफी है !

Bansi:
पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
#बशीर_बद्र

Bansi:
दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
बंदगी हालत से ज़ाहिर है ख़ुदा हो या न हो

Bansi:
कब से खड़े हुए हैं उसी रहगुजर पे हम,
जहाँ कह के गए थे तुम..'यहीं रुकना अभी आते हैं'

Bansi:
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

Bansi:
ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए
रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है

Bansi:
पहले इसमें इक अदा थी , नाज़ था ,अंदाज़ था
रूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया

Bansi:
गैर को दर्द सुनाने की ज़रूरत क्या है?
अपने झगडे में ज़माने की ज़रूरत क्या है?

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