वक़्त-ए-रुखसत कहीं तारे कहीं जुगनू आये
हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आये
देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
आँख जब तक है तुझे सिर्फ तुझे देखूंगा
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है
हमारी तड़प तो कुछ भी नहीं यारो ..
सुना है उसके दीदार को तो आइने भी तरसते हैं.............
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