कुछ जुदा सा है मेरे महबूब का अंदाज,
नजर भी मुझ पर है और नफरत भी मुझसे ही !
कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को
मैं ने अपने से बड़े शख़्स को गाली दे कर
~ ज़फ़र गोरखपुरी
हालात-ए-हाज़िरा पर ताज्जुब है गर, तो यही है
वो हर एक बात पर कहना उसका कि सब सही है
"निकले है वो लोग मेरी शख़्सियत बिगाड़ने,
किरदार जिनके खुद मरम्मत माँग रहे है"!!!
ये अलग बात के खामोश खड़े रहते हैं,
फिर भी जो लोग बड़े हैं, वो बड़े रहते हैं.
पाँव रखने पर भी चीख उठते हैं...
खुश्क पत्तों में भी कितनी अना होती है!!
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