Wednesday, 15 April 2020

अपने अहम को

अपने अहम को 
थोड़ा झुका कर तो देखो 

सब अपने लगेगें 
थोड़ा मुस्कुरा कर तो देखो......

एक वो है जो समझता नही, 

और यहाँ जमाना मेरी कलम पढ़ कर दीवाना हुआ जा रहा है

लिख देने से नहीं...

तुम्हारे पढ़ लेने से मुकम्मल हैं
लफ्ज मेरे...

शर्त थी रिश्तों को बचाने की,

“और” यही वजह थी मेरे हार जाने की…

कुछ रिश्तो मे नजदीकी तो होती है....
लेकिन....

.‘वो’ ...........फ़ासले कभी खतम नही होते !

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