अपने अहम को
थोड़ा झुका कर तो देखो
सब अपने लगेगें
थोड़ा मुस्कुरा कर तो देखो......
एक वो है जो समझता नही,
और यहाँ जमाना मेरी कलम पढ़ कर दीवाना हुआ जा रहा है
लिख देने से नहीं...
तुम्हारे पढ़ लेने से मुकम्मल हैं
लफ्ज मेरे...
शर्त थी रिश्तों को बचाने की,
“और” यही वजह थी मेरे हार जाने की…
कुछ रिश्तो मे नजदीकी तो होती है....
लेकिन....
.‘वो’ ...........फ़ासले कभी खतम नही होते !
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