मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
जो व्यस्त थे...वो व्यस्त ही निकले,
वक्त पर " फालतू " लोग ही काम आए...
" लिखना तो ये था की खुश हूँ तेरे बगैर भी
पर कलम से पहले आंसू कागज़ पर गिर गया "......!!
अपने वो नहीं होते जो
तस्वीरों में साथ खड़े होते है..
अपने तो वो होते हैं जो
तकलीफों में साथ खड़े होते हैं... !
वोह कच्चा रिश्ता.....पक्के रंग छोड़ गया !
"निशानी क्या बताऊँ तुझे अपनें घर की
जहाँ की गलियां उदास लगे वहीं चले आना "
रंग उसी का चढ़ा है अब तक,
जिसने रंग नहीं लगाया अभी तक
“वक़्त ने गुज़रते हुए तजुर्बे के कान मे हौले से कहा,
ये ख्वाहिशें ही हैं जो झुर्रियो में तब्दील हो गईं।”
जुल्फें बांधा मत करो तुम ,
हवाएं नाराज रहती है ।
"चादर" से "पैर" तभी बाहर आते हैं,..
जब "उसूलों" से बड़े "ख्वाब" हो जाते हैं !
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